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________________ अध्याय ३१ भारतीय दर्शन और धर्म सामान्य सिद्धान्त और विभिन्न दर्शन दर्शन का अभिप्राय है ज्ञानप्राप्ति की इच्छा । यह ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान के साथ विश्व के ज्ञान के विषय में है । इसमें जीव और प्रकृति की उत्पत्ति तथा विकास के विषय में विवेचन किया गया है । किसी निर्णय पर पहुँचने के लिए युक्तियों का आश्रय लिया गया है। अतः दर्शन बहत अधिक विचारात्मक है । ___ धर्म का अभिप्राय है किसी विषय में श्रद्धा या विश्वास । इस श्रद्धा या विश्वास को क्रियात्मक रूप दिया जाता है । श्रद्धा का सम्बन्ध जीवात्मा और परमात्मा से तथा इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध से है। जीव और प्रकृति के ऊपर ईश्वर की प्रधानता स्वीकार की जाती है । इस प्रकार धर्म अनुभव की वस्तु हो जाता है । यह एक प्रकार का आध्यात्मिक आविष्कार है, इसमें बुद्धि से अतीत परमात्मा का अनुभव किया जाता है । यह अनुभव स्पष्ट, साक्षात्, स्फूर्तिप्रद और आश्चर्यजनक होता है । इस प्रकार धर्म क्रियात्मक और प्राप्तिरूप है । ____दर्शन और धर्म का बाह्य दृष्टिकोण विभिन्न है । पाश्चात्य देशों में दर्शन और धर्म को पृथक्-पृथक् रक्खा गया है। परन्तु भारतवर्ष में इन दोनों का एकत्र ही वर्णन किया गया है और दोनों के मध्य कोई विभेदक सीमा नहीं खींची गई है। भारतवर्ष में दर्शन विचारात्मक होते हए भी सत्य का अनुसन्धान करता है और वहीं पर स्थिर नहीं रहता है । इसमें इस बात का भी वर्णन किया जाता है कि किस प्रकार का जीवन विताने से उस सत्य को प्राप्त कर सकते हैं । इस अन्तिम विवेचन में दर्शन धर्म
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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