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________________ ३५२ संस्कृत साहित्य का इतिहास नागार्जुन रसायन-विज्ञान और आयुर्वेद का प्राचार्य माना जाता है। उसका रसायन-विज्ञान के विकास में बहुत हाथ था। उसने धातु-सम्बन्धी मिश्रणों के तैयार करने में विशेष योग्यता प्राप्त की थी। पारे और लोहे के जो उसने रासायनिक मिश्रण तैयार किए थे, उनका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग (६२६-६४५ ई०) तथा मुसलमानी लेखक अलबेरुनी (१०१७-१०३० ई० ) ने भी किया है । यह कहा जाता है कि नागार्जुन ने रसायनविज्ञान पर एक ग्रन्थ लिखा था । संखिया से जो दवाएँ तैयार की जाती थीं, उनका आयुर्वेदिक कार्यों के लिए पान आदि भी कराया जाता था। सुश्रुत ने क्षारों के निर्माण और प्रयोग के विषय में विस्तृत विचार किया है । कुतुबमीनार को १४सौ वर्ष हो गये हैं, परन्तु उस पर आजतक न मोर्चा लगा है और न उस पर लिखे हुए अक्षर ही मिटे हैं, इससे ज्ञात होता है कि उस समय लोहे को विशेष प्रकार से तैयार किया जाता था और उसका विशेष कार्यों में भी प्रयोग होता था। रसार्णव और रसरत्नसमुच्चय में यह विधि दी गई है कि किस प्रकार कच्ची धातु से जस्ता निकाला जा सकता है। बौद्धों ने रसायनविज्ञान के विषय में बहुत बड़ी देन दी है । बौद्ध लोग अपने रसायन विज्ञान सम्बन्धी ग्रन्थों के साथ जो चीन और तिब्बत को चले गये, उसी कारण से भारत में रसायन विज्ञान और कुछ अंश में वैद्यक का भी ह्रास हुआ है। शल्य और ज्योतिष के साथ ही साथ वैद्यकशास्त्र के क्षेत्र में पुराकालीन भारतीयों का अनुभव श्लाघ्य है । इस अनुभव का प्रमाण अध्ययन की पथक-पथक शाखामों के ग्रन्थों से प्राप्त होता है । यह वनस्पतिशास्त्र, पदार्थ-सम्पत्तिों , नक्षत्रों तथा ग्रहों की पूर्व कल्पना करता है। यह ज्ञान केवल सिद्धान्त रूप तक ही सीमित न था । इन शास्त्रों से सम्बन्धित पदार्थों का प्रयोग प्रयोगशालाओं में अवश्य किया जाता रहा होगा। किये जाने वाले प्रयोगों का ढंग, तत्सम्बन्धी प्रयुक्त प्रायोगिक यन्त्रों तथा अन्य पदार्थों को सन्तति के हाथों नहीं सौंपा गया। इसका कारण आसानी से जाना जा सकता था। भारतीय वैद्यकशास्त्र के शल्य-पक्ष के विलयन का मुख्य रूप से
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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