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संस्कृत साहित्य का इतिहास
यह अपूर्ण रूप में उपलब्ध होता है । मातंग चतुर्थ शताब्दी ई० पू० से पूर्व हुआ था । संगीत विषय पर उसके विचारों को अभिनवगुप्त आदि ने उद्धृत किया है । संगीतमकरंद का लेखक नारद को माना जाता है । यह ग्रन्थ आजकल जिस रूप में प्राप्त होता है, उसमें अभिनवगुप्त के विचारों का उल्लेख है । आलोचकों ने इसका समय ७वीं और ११वीं शताब्दी ई० के बीच में माना है । यादवराजा सिंघन ( ११३२-११६९ ई० ) के प्राश्रित शार्ङ्गदेव ने संगीत विषय पर सात अध्यायों में संगीतरत्नाकर ग्रन्थ लिखा है । उसका दूसरा नाम निःशंक था । वह संगीत, दर्शन और वैद्यक में निष्णात था, यह उसके ग्रन्थ से ज्ञात होता है । उसका यह ग्रन्थ एक मौलिक ग्रन्थ है । इसमें उसने विषय का लक्षण, उदाहरण और विवेचन पूर्णतया दिया है । नान्यदेव ने ११८० ई० में रोगों के नियमों के विषय में १७ अध्यायों में सरस्वतीहृदयालंकारहार ग्रन्थ लिखा है | चालुक्य विक्रमादित्य के पुत्र तथा बिल्हण के प्रश्रयदाता सोमेश्वर ने १२वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में मानसोल्लास ग्रन्थ लिखा है । इसमें उसने संगीत तथा वाद्यों के विषय में वर्णन किया है। इस विषय के अन्य ग्रन्थ ये हैं – १३वीं शताब्दी ई० के जैन पार्श्वदेव का संगीत समयसार, १४वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध के हरिपाल का संगीतसुधाकर और विद्यारण्य का संगीतसार । विद्यारण्य और माधव ( लगभग १३५० ई० ) एक ही व्यक्ति माने जाते हैं । रेड्डी राजा वेम भूपाल ने १५वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध में संगीतचिन्तामणि ग्रन्थ लिखा है । कुम्भकर्ण ने १४४० ई० में संगीतराज ग्रन्थ लिखा है । संगीत विषय पर इस ग्रन्थ की बहुत बड़ी देन है । १६वीं शताब्दी ई० के मध्य में रामामात्य ने कर्णाटक के संगीत के रोगों के विषय में स्वरमेलकलानिधि ग्रन्थ लिखा है । उत्तर भारतीय संगीत को पुण्डरीक विट्ठल ( लगभग १६०० ई० ) के ग्रन्थों ने समृद्ध किया है । उसने नर्तननिर्णय, रागमंजरी, रागमाला और षड्ागचंद्रिका ग्रन्थ लिखे हैं । तन्जौर के राजा रघुनाथ नायक के लिए गोविन्ददीक्षित ( लगभग १६०० ई० ) ने संगीतसुधा नामक ग्रन्थ लिखा