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उपवेद
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भारतीय संगीत में लय को विशेष महत्त्व दिया गया है । इसमें माधुर्य लाने के लिए संगीत के प्रत्येक विभाग में पूर्णता लाई गई । ध्वनि के प्रत्येक रूप का बहुत सावधानी और आलोचना के साथ अध्ययन किया गया। श्रव्य ध्वनि को श्रुति कहा जाता है । संगीताचार्यों ने श्रुति के २२ भेद माने हैं। श्रुति से स्वरों की उत्पत्ति होती है । स्वर कोमल और मधुर ध्वनि हैं । ये स्वयं श्रोताओं को प्रसन्न करते हैं । देखिए--
श्रुत्यनन्तरभावी यः स्निग्धोऽनुरणनात्मकः । स्वतो रञ्जयति श्रोतचित्तं स स्वर उच्यते ।।
संगीतरत्नाकर १-३-२४, २५ स्वरों से राग उत्पन्न होते हैं । लय के नियमों के अनुसार आरोह और अवरोह के अनुसार राग विभिन्न भागों में क्रमबद्ध किए गए हैं। संगीत में गमक को विशेष महत्त्व दिया गया है । स्वरों को परिष्कृत रूप देने से गमक की उत्पत्ति होती है । देखिए-- स्वरस्य कम्पो गमकः श्रोतृचित्तसुखावहः ।
__संगीतरत्नाकर २, ३.८७ संगीत में कठोरता के साथ संगीत के नियमों का पालन किया जाता है । संगीत को स्थूल रूप में दो भागों में विभक्त किया गया है-मौखिक और यान्त्रिक । सितार, वीणा और ढोल ये राष्ट्रीय वाद्य हैं । वैदिक ग्रन्थों में संगीत के वाद्यों का उल्लेख है । संगीत दो प्रकार का होता है--मार्ग और देशी । मार्ग संगीत में संगीत के नियमों का पालन किया जाता है और तदनुसार उनकी रचना होती है। देशो संगीत में केवल जन-प्रियता का ध्यान रक्खा जाता है । ___ यमलाष्टकतन्त्रों में कुछ संगीत का वर्णन हैं । नाट्यशास्त्र संगीत-विषय पर सबसे प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थ है। यह कहा जाता है कि भरत के शिष्य कोहल ने संगीत-विषय पर एक ग्रन्थ लिखा था । उनका तालाध्याय ही आज कल प्राप्य है । मातंग ने देशी संगीत विषय पर बृहद्देशी ग्रन्थ लिखा है ।