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संस्कृत साहित्य का इतिहास
शताब्दी ई० में लिखा गया है
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वीरभद्र
अनङ्गरङ्ग । यह १६वीं का कन्दर्पचिन्तामणि । यह १६वीं शताब्दी ई० में लिखा गया है ।
गान्धर्व-वेद
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गान्धर्व-वेद भी उपवेद है । इसका सम्बन्ध सामवेद से है । इसमें नृत्य और संगीत का समावेश होता है । भारतीय संगीत में स्वरों के अस्तित्व का कारण वैदिक स्वर है। पुराणों में संगीत और नृत्य का वर्णन है । सदाशिव, ब्रह्मा और भरत -- ये नृत्य विषय पर सबसे प्राचीन प्रामाणिक आचार्य हैं । भरत के नाट्यशास्त्र ने नृत्य और संगीत की आधारशिला रक्खी है | नाट्यशास्त्र नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें नाटकीय अभिनय को मुख्यता दी गई है । नाटकीय अभिनय में संगीत का भी समावेश होता है । बाद के लेखकों ने जो उद्धरण दिए हैं, उससे ज्ञात होता है कि इस विषय पर दो प्रामाणिक प्राचार्य हुए थे । एक का नाम वृद्ध भरत था और दूसरे का नाम भरत था । वृद्ध भरत ने नाट्यवेदागम ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ का दूसरा नाम द्वादशसाहस्त्री है । इसका ज्ञान केवल उद्धरणों से होता है । भरत ने नाट्यशास्त्र लिखा है । इसका दूसरा नाम शतसाहस्री है । नाट्यशास्त्र में नृत्य और संगीत के विस्तृत वर्णन के अतिरिक्त रसों और अभिनयों का भी वर्णन है । अतएव नाट्यशास्त्र, संगीत, नृत्य, नाटक और काव्यशास्त्र के विषय में प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है । भरत के शिष्य दत्तिल ने संगीत और नृत्य विषय पर दत्तिल नाम का ग्रन्थ लिखा था । वह नष्ट हो गया है । नन्दिकेश्वर या नन्दी ने संगीत और नृत्य विषय पर भरतार्णव ग्रन्थ लिखा है । इसमें ४ सहस्र श्लोक हैं । वह संभवत: भरत का समकालीन था । नाटयार्णव और अभिनयदर्पण ग्राजकल प्राप्य हैं । ये दोनों मूल भरतार्णव के ग माने जाते हैं । इनमें नृत्यकला का विस्तृत विवेचन है । इन दोनों ग्रन्थों का समय द्वितीय शताब्दी ई० है । हेमचन्द्र ( १०८८ - ११७२ ई० ) के शिष्य रामचन्द्र ( लगभग १२०० ई० ) ने गुणचन्द्र के साथ मिलकर अपनी टीका के सहित नाट्यदर्पण ग्रन्थ लिखा है ।