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वेद और पाश्चात्य विद्वान् पारिवारिक पद्धति में पिता की प्रधानता होती थी । पुरोहित उनके परिवार का पथप्रदर्शक होता था। विवाह की प्रथा प्रायः ऐसी ही थी, जैसी कि आज कल प्रचलित है। परिवार में स्त्रियों का स्थान उच्च था। उनको गृह-स्वामिनी कहा जाता था। पुत्र की उत्पत्ति शुभ घटना मानी जाती थी । जो सन्तान-हीन होते थे, वे दूसरे के पुत्र को गोद ले लेते थे। ___ वर्ग-व्यवस्था ने इस समय एक स्थिर रूप धारण किया । ब्राह्मण पुरोहित का कार्य करते थे । क्षत्रिय राज्य करते थे। वैश्य व्यापार करते थे । शूद्र उपर्युक्त तीनों वर्गों की सेवा का कार्य करते थे। समाज के उच्च स्तर को स्थित रखने के लिए यह व्यवस्था बनाई गई थी। यह मनुष्यों के आजीविका के कार्यों के आधार पर स्थित थी । लोहार, बढ़ई, जुलाहे, रस्सी बनाने वाले, मुनार, अभिनेता तथा अन्य कितने ही प्रकार की विभिन्न आजीविका वाले व्यक्ति थे।
आर्य कई भागों में बँटे । प्रत्येक शाखा ने एक राजनीतिक रूप धारण किया। राजा शासनकर्ता होता था। राजत्व वंश-परम्परागत होता था । जनता की इच्छा के अनुसार राजा की शक्तियाँ नियन्त्रित होती थीं। युद्ध में रथों का उपयोग होता था । यद्यपि वेद के प्राचीन अंशों में घोड़े और हाथियों का उल्लेख है, तथापि युद्ध में उनका उपयोग प्रायः नहीं होता था। ___ इस समय नैतिक स्तर बहुत ऊँचा था । परपुरुष-गमन तथा परस्त्री-गमन और बलात्कार महापाप समझे जाते थे । एक विवाह और इसका महत्त्व पूर्ण रूप से माना जाता था। तथापि बहुविवाह भी कहीं-कहीं प्रचलित था । ___शव को जलाना और गाड़ना, ये दोनों प्रथाएँ थीं । शव को जलाना अधिक प्रचलित था । शव को गाड़ना, विशेषतः बाद के काल में, कुछ विशेष वर्गों के लिए ही नियन्त्रि तथा ।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, और सामवेद ये तीनों वेद आदिनिवासियों के धार्मिक और लौकिक कार्यों पर प्रकाश डालते हैं, किन्तु अथर्ववेद अकेला ही लौकिक पक्ष पर बहुत अधिक प्रकाश डालता है । शत्रुओं और रोगों को दूर करने के