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संस्कृत साहित्य का इतिहास
लिए विभिन्न प्रकार के मन्त्र-तन्त्र आदि प्रचलित थे । यह वेद वैद्यक, गणित ज्योतिष और फलित ज्योतिष के विषय में भी प्रर्याप्त सूचना देता है । इसमें पारिवारिक और व्यापारिक समृद्धि के लिए मन्त्रादि दिए गए हैं ।
वेदों में प्रार्थना और वैदिक कर्म-काण्ड के निर्देशों के अतिरिक्त विवाह, अन्त्येष्टि तथा अन्य संस्कारों के लिए भी मन्त्र दिए गए हैं । सृष्टिउत्पत्ति तथा नीति-सम्बन्धी मन्त्र भी बहुत बड़ी संख्या में हैं । शुनःशेप, पुरुरवा और उर्वशी, यम यमी आदि के जीवन से संबद्ध घटनाओं का भी इसमें उल्लेख मिलता है ।
शक्तियों की पूजा करते थे
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प्रारम्भिक समय में आर्य लोग प्राकृतिक और उनकी शक्तियों को शारीकि रूप देते थे वेद में मूर्तियों का वर्णन नहीं है । देवताओं में अग्नि, वरुण और इन्द्र मुख्य थे । वरुण न्याय का रक्षक था । ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, वह गौण होता गया और अन्त में समुद्र का देवता रह गया। इन्द्र ने भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान छोड़ दिया और वर्षा के अधिष्ठातृ देवता के रूप में विद्यमान न रहा । वह देवताओं के राजा के रूप में रह गया । इन्द्र के पश्चात् महत्व की दृष्टि से अग्नि का स्थान है । उसका स्थान उसी प्रकार बना रहा, क्योंकि वैदिक कर्मकाण्ड से उसका विशेष सम्बन्ध था । सविता, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि वेद के प्रारंभिक अंगों में मुख्य रूप से हैं । ये वैदिक काल के अन्त में और अधिक प्रचलित हुए । मित्रावरुण, अश्विनी, वसु, आदित्य आदि सामूहिक देवता हैं । रात्रि, पृथिवी, सरस्वती आदि स्त्री देवता हैं । देवताओं के समूह को विश्वेदेव कहा जाता था । ये वैदिक काल के मध्य भाग में अधिक प्रचलित हुए। श्रद्धा, मन्यु, काम, आदि गुणों को देवता का रूप दिया गया । एक विशेषता यह भी है कि विशेष प्रकरणों में प्रत्येक को ही सर्वोच्च देवता माना गया है । मैक्समूलर ने इस विशेषता की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि " जब यज्ञ के देवता अग्नि को कवि सम्बोधन करता है तो वह उसको सर्वोच्च देवता कहता है । वह इन्द्र से भी न्यून नहीं है । जब अग्नि को सम्बोधन किया जाता है तो