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संस्कृत साहित्य का इतिहास
या प्रचलित शब्द दिखाई नहीं पड़े, जिसके लिए टीकाओं की सहायता आवश्यक हो । यद्यपि उन्होंने इन टीकात्रों की सहायता ली है, परन्तु वेदों की व्याख्या के लिए उन्होंने इन टीकाओं को पूर्णरूप से आधार नहीं माना । जहाँ पर कठिन या विशेष प्रकार के अंश मिले, उसके लिए उन्होंने ग्रन्थ ही द्वारा उसकी व्याख्या करना उचित समझा। उन्होंने वेदों को ठीक समझने के लिए तुलनात्मक पद्धति की सहायता ली ।
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उनके मतानुसार वेदों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत के आदिनिवासी चरागाह पर आजीविका - निर्वाह करने वाले थे । उनके घर लकड़ी के बने हुए थे । उनके भोजन में घी, दूध, अनाज, साग और फल सम्मिलित थे । बर्तन धातु या मिट्टी के बने हुए होते थे । पीने के बर्तन लकड़ी के बने होते थे । मदिरापान नियन्त्रित था । प्रारम्भिक समय में पशुपालन उनकी मुख्य आजीविका थी । बाद में कृषि और मृगया का भी उन्होंने अभ्यास किया । शत्रुओं के आक्रमण से अपने बचाव के लिए उन्होंने युद्धकला का अभ्यास किया । इस कार्य के लिए धनुष और बाण हथियार के रूप में प्रयोग में आए । कवच धातु का बना हुआ होता था । नदियों को पार करने के लिए नावों का उपयोग होता था । एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु का देना यही आदान-प्रदान की विधि थी । द्यूत प्रचलित था । नृत्य और संगीत बहुत उच्च अवस्था में थे । ढोल, बाँसुरी और सितार ये संगीत के लिए वाद्य थे । घरेलू पशुओं में गाय का स्थान मुख्य था । 'गाय की अब तक केवल अवशिष्ट ही नहीं रही है, अपितु बढ़ता ही गया है ।' 'अन्य किसी पशु का मनुष्यमात्र ने इतना ऋण नहीं माना है । यह ऋण भारतवर्ष में गोपूजा के द्वारा अच्छे प्रकार से उतारा गया है । यह गोपूजा अन्य देशों में प्रचलित नहीं है ।' *
पवित्रता भारतवर्ष में
धीरे-धीरे उसका महत्त्व
* A History of Sanskrit Literature by A. A. Macdonell पृष्ठ ११०