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ज्योतिष
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चिह्नों के आधार पर इसमें शकुनों का वर्णन किया गया है । यह किसी अज्ञात लेखक की रचना है जो ४थी शताब्दी ई० में रखा जाता है।
प्रभाशंकर का पुत्र कानजित वायुशास्त्र का लेखक है। वह कच्छ में स्थित भुजङ्गपुर का निवासी था। वह ग्रन्थ की तिथि १८२२ शक सम्वत् देता है जो १६०० ई० के सदृश है। इसमें दस अध्याय हैं । यह ग्रन्थ अन्तरिक्षविद्या सम्बन्धी विषयों का वर्णन करता है । इसमें प्रमुख रूप से वर्षा का वर्णन है। इस ग्रन्थ में असामयिक और सहसा होने वाली वर्षा के प्रभावों
और भविष्यवाणियों की चर्चा की गई है। लेखक के अनुसार वराह, कश्यप, भद्रबाहु और वशिष्ठ की संहिताएँ तथा पराशरसूत्र इस ग्रन्थ के आधार हैं।
ज्योतिष में गणित का भी विवेचन होता है। गणित में गणित ज्योतिष, अंकगणित और बीजगणित इन तीनों का वर्णन होता है। इसमें रेखागणित का भी वर्णन है। रेखागणित का प्रारम्भ शुल्वसूत्रों से हुआ था। भारतीय गणितज्ञों ने परार्ध (१०,१४) तक को गणना करके गणित में पूर्णता प्राप्त की थी । शुद्धता भारतीय गणित की प्रमुख विशेषता है । घटाने के सिद्धान्त का ज्ञान वैदिक काल में था। अंकों का सम और विषम दो रूपों में वर्णन किया गया है। भारतीय गणितज्ञों ने ही दशमलव की विधि तथा बीजगणित को पद्धति का आविष्कार किया था। इन दोनों विधियों की पूर्णता छन्द:शास्त्र और व्याकरण में दष्टिगोचर होती है । सरल रेखात्मक क्षेत्रों का बनाना, क्षेत्रफल और घनफल तथा पैथागोरस के प्रमेयों का वर्णन प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने किया है। बोधायन श्रौतसूत्र (५०० ई० पू०) तथा शतपथब्राह्मण में पैथागोरस के प्रमेयों के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन है ।
आर्यभट्ट का जन्म ४७६ ई० में कुसुमपुर में हुआ था। वही सबसे प्रथम भारतीय ज्योतिषी है, जिसने गणित ज्योतिष के आधार पर गणित लिखा है । उसने ४६६ ई० में आर्यभटीय ग्रन्थ लिखा है। इसमें आर्या छन्द में दस श्लोक हैं। उसने दूसरा ग्रन्थ दशगीतिकासूत्र लिखा है। इसमें १०८ श्लोक हैं। इन श्लोकों में से ३३ श्लोक गणित के विषय में हैं, २५