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संस्कृत साहित्य का इतिहास
बृहज्जातक में उसने प्रायः यवनाचार्य के विचारों का उल्लेख किया है और उनकी समालोचना को है। ___ वराहमिहिर के पुत्र पृथुयशाः (लगभग ६०० ई०) ने होराषट्पंचाशिका ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने जन्म-सम्बन्धी बातों का विवेचन किया है। भट्टोत्पल ने वराहमिहिर और उसके पुत्र पृथुयशाः के ग्रन्थों की टोका लिखी है । वह ६६६ ई. के लगभग हरा था। उसने होराशास्त्र ग्रन्थ भी लिखा है । विद्वज्जनवल्लभ तथा राजमार्तण्ड ग्रन्थ का लेखक धारा का राजा भोज (१००५-१०५४ ई०) माना जाता है। इस काल के बाद लिखे गए विवाह
और अन्य संस्कार सम्बन्धो छोटे ग्रन्थों में ताजिकों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इन पर अरबी और फारसो साहित्य का भी प्रभाव पड़ा है। ताजिकों में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान नीलकण्ठ के ताजिका का है । वह १५८७ ई० में लिखा गया था। हर्षकोति-सूरि-लिखित ज्योतिषसारोद्धार ग्रन्थ का समय अज्ञात है।
हस्तरेखाशास्त्र (सामुद्रिकशास्त्र) का विवेचन सामुद्रिकतिलक ग्रन्थ में हुप्रा है । इस ग्रन्थ को दुर्लभराज ने ११६० ई० में प्रारम्भ किया था और उसके पुत्र जगदेव ने इसको पूर्ण किया था। स्वप्नचिन्तामणि ग्रन्थ का लेखक भो जगदेव माना जाता है । इस ग्रन्थ में स्वप्नसम्बन्धी बातों का वर्णन है । नरहरि ने ११७६ ई० में नरपतिजयचर्यास्वरोदय ग्रन्थ लिखा है। इसमें चामत्कारिक रेखाचित्र दिए गए हैं और उनमें रहस्यात्मक अक्षर रक्खे गए हैं । अद्भुतसागर ग्रन्थ को बंगाल के राजा वल्लालसेन ने ११६८ ई० में प्रारम्भ किया था और उसके पुत्र राजा लक्ष्मणसेन ने इसको पूर्ण किया था। इसमें शकुनों तथा भविष्यवाणियों का विवेचन है। भयभंजन ने रमलरहस्य में रेखामों से भविष्यवाणी का वर्णन किया है तथा पाचककेवली में धन रेखायों से भविष्यवाणी का वर्णन किया है। उसका समय अज्ञात है । ___ फलित ज्योतिष-विषयक समस्याओं का वर्णन प्राकृत भाषा के लेखकों ने किया है। अङ्गविज्जा इस प्रकार का एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है । शरीर के