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संस्कृत साहित्य का इतिहास श्लोक समय के माप के विषय में हैं और ५० मण्डलों के विषय में हैं। आर्यभट्ट का मत था कि पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर घूमती है। उसने सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहण के विषय में जो मत प्रकट किया है, वही आधुनिक विद्वान् भी मानते हैं । उसने अपने ग्रन्थ में विकास, परिक्रमण, क्षेत्र, आयतन, परिधि, क्रमिक-विकास तथा बीजगणित की इकाइयों का वर्णन किया है। उसे दो का वास्तविक मूल्य ज्ञात था। उसने 7 का मान ३५५/२१२ दिया है जो आधुनिक गणितज्ञों द्वारा दी गई २२/७ से कहीं अधिक शुद्ध है। आर्यभट्ट के शिष्य भास्कर ने दो ग्रन्थ लिखे हैं-लघुभास्करीय और महाभास्करीय ।
ब्रह्मगुप्त ने ६२८ ई० में ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त नामक ग्रन्थ लिखा है। इसमें एक अध्याय में गणित-ज्योतिष-सम्बन्धी समस्याओं को हल किया गया है । उसका जन्म ५६८ ई० में हुआ था। वह गणित में निपुण था। उसने ६६५ ई० में खण्डखाद्यक ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने गणित ज्योतिष सम्बन्धी गणनामों को हल करके दिया है।
बाक्षलि की हस्तलिखित प्रति का समय ८वीं शताब्दी ई० है । इसमें सूत्रों के रूप में गणित का वर्णन किया गया है। गृहचारनिबन्धन और गृहचारनिबन्धनसंग्रह---इन दो ग्रन्थों का लेखक हरिदत्त है जो ८६६ ई० पूर्व था। प्रथम पुस्तक की रचना पद्यात्मक है। इसमें प्रहित नामक पद्धति के सिद्धान्तों के आधार पर फलित ज्योतिष सम्बन्धी गणनामों का वर्णन है । द्वितीय पुस्तक प्रथम का संक्षिप्त रूप है। इसमें ४५ श्लोक हैं । महावीराचार्य ने १०वीं शताब्दी के प्रारम्भ में गणितसारसंग्रह ग्रन्थ लिखा है । यह ग्रन्थ ब्रह्मगुप्त के ग्रन्थ से सरल है। इसमें गुणोत्तर श्रेणियों का वर्णन है । श्रीधर ने ६६१ ई० में वर्ग-समीकरण विषय पर त्रिशती गुन्थ लिखा है । धारा के राजा भोज ने १०४२ ई० में करण विषय पर राजमगांक ग्रन्थ लिखा है।
भास्कराचार्य ने ११७२ ई० में सिद्धान्तशिरोमणि ग्रन्थ लिखा है। इसमें चार भाग हैं--(१) लीलावती। इसमें संयोगों का वर्णन है। (२) बीज