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________________ अध्याय २८ ज्योतिष श्रेण्यकालीन ज्योतिष का सम्बन्ध वैदिक काल के ज्योतिष के साथ है । इस विषय की मुख्य शाखाएं गणित-ज्योतिष, फलित ज्योतिष और गणित हैं । इसमें दिनों की गणना की जाती थी और नक्षत्रों का ग्रहों के साथ गति आदि का निरीक्षण किया जाता था। वैदिक पंचांग चान्द्र और सौर दोनों प्रकार का था। उत्तरायण और दक्षिणायन का निरीक्षण किया जाता था । चन्द्रग्रहण का कारण चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया माना गया है । बहुत प्राचीन समय से ग्रहों और नक्षत्रों की गतिविधि तथा उनका मनुष्यों पर प्रभाव स्वीकार किया गया है और उसका अध्ययन किया गया है। इस विषय का विशेष विवेचन फलित ज्योतिष में किया जाता था । फलित ज्योतिष का सम्बन्ध गणित ज्योतिष से है और यह गणित ज्योतिष पर आश्रित है । गणित ज्योतिष में ग्रहों की गति का विशेष विवेचन होता है । फलित ज्योतिर्विद् मनुष्यों के भावी जीवन के विषय में भविष्यवाणी करते थे । राजाओं के लिए शान्ति और यद्ध दोनों समयों में ज्योतिषी की सहायता लेना अनिवार्य होता था । तथापि ज्योतिषी को समाज में उच्च स्थान नहीं प्राप्त था, क्योंकि वह वैदिक कर्मकाण्ड में भाग न लेने के कारण अपवित्र माना जाता था। ग्रहों की गति की गणना तथा उनकी स्थिति का निर्णय करना, इन दोनों कारणों ने गणितशास्त्र को जन्म दिया। भारतवर्ष को ही यह श्रेय प्राप्त है कि उसने बीजगणित और संकेतचिह्नात्मक विधि की स्थापना की । भारतवर्ष में ज्यामिति और त्रिकोणमिति में बहुत प्रगति की जा चुकी थी । ज्योतिष-विषय के जो ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उनमें इन विषयों का विवेचन है । किसी में एक और किसी में दो विषयों का वर्णन है।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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