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छन्दःशास्त्र और कोशग्रन्थ
३२१ का लेखक माना जाता है । १२०० ई. के लगभग पुरुषोत्तमदेव ने अमरकोश का परिशिष्ट त्रिकाण्डशेष लिखा है। इसमें अधिकतर बौद्ध धर्म से सम्बद्ध शब्द हैं । ये शब्द प्रयोग में कम आते हैं । उसने अमरकोश के समानार्थक और नानार्थक शब्दों पर हारावली व्याख्या लिखी है । भट्टमल ने समानार्थक धातुओं पर पाल्यातचन्द्रिका ग्रन्थ लिखा है । वह १४वीं शताब्दी से पूर्व हुआ था । हरिहर द्वितीय के मन्त्री इरुगप्पदण्डनाथ ने १४वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में नानाथरत्नमाला ग्रन्थ लिखा है । वामनभट्टबाण ( लगभग १४२० ई० ) ने दो कोशग्रन्थ लिखे हैं-शब्दचन्द्रिका और शब्दरत्नाकर । मेदिनीकर ने १४वीं शताब्दी ई० में नानार्थक शब्दों के विषय में अनेकार्थशब्दकोश ग्रन्थ लिखा है । केशवदैवज्ञ ने समानार्थक शब्दों के विषय में कल्पनु नामक कोश लिखा है। वह १७वीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ में हुआ था । समानार्थक शब्दों के विषय में लिखे गये नामसंग्रहमाला ग्रन्थ का लेखक अप्पयदीक्षित माना जाता है । इसके अतिरिक्त कुछ छोटे कोशग्रन्थ हैं--एकाक्षरकोश, इसमें एक अक्षर वाले शब्दों का वर्णन है। द्विरूपकोश, इसमें दो वर्ण वाले शब्दों का वर्णन है । इनके अतिरिक्त गणित ज्योतिष, फलित ज्योतिष और वैद्यक सम्बन्धी कोष हैं । उनका समय अज्ञात है । संस्कृत और फारसी के शब्दों का कोश पारसीप्रकाश है। गणित ज्योतिष और फलित ज्योतिष के पारिभाषिक शब्दों को लेकर वेदांगराय ने १६४३ ई० में पारसीप्रकाश ग्रन्थ लिखा है । महादेव वेदान्ती ने उसी समय उणादिकोश लिखा है। धनपाल ( १००० ई० ) लिखित पयालच्छि ग्रन्थ प्राकृत शब्दों का कोश है । हेमचन्द्र ( १०८८-११७२ ई० ) लिखित देशीनाममाला प्राकृत शब्दों का ही कोश है । तारानाथ तर्कवाचस्पति-लिखित वाचस्पत्य और राधाकान्तदेव-लिखित शब्दकल्पद्रुम, ये दोनों अन्ध विश्वकोश के तुल्य हैं । ये दोनों ग्रन्थ अाधुनिक कृति हैं ।
सं० सा० इ०-२१