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वेद और पाश्चात्य विद्वान्
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नदी, शेर और चावल के उल्लेख का अभाव है, अतः उपर्युक्त निर्णय किया गया है । बाद वाले अंश में इन चीजों का उल्लेख मिलता है । इन प्रदेशों में मंडल २ से ७ बने थे । शेष मंडल १, ८, ६, १० बाद में विभिन्न स्थानों पर बने थे । यजुर्वेद और सामवेद यमुना नदी के किनारे के प्रदेशों में बने हैं ।
वेद आर्यों के बंगाल में स्थिर होने के बाद बना है । ऋग्वेद अन्य वेदों की अपेक्षा बहुत समय पूर्व बना था, यह इस बात से सिद्ध होता है कि ऋग्वेद के बहुत से मन्त्र अन्य वेदों में प्राप्त होते हैं ।
न केवल ये वेद विभिन्न स्थानों पर बने हैं, अपितु प्रत्येक के विभिन्न अंश भिन्न-भिन्न स्थानों पर बने हैं । सर्वप्रथम आने वाले आर्यों ने ऋग्वेद के मंत्रों के रूप में जो देवताओं की स्तुति की है, उसके द्वारा वे कठिनाइयों के समय में इन मंत्रों के पाठ के द्वारा देवताओं की सहायता चाहते थे । कुछ समय पश्चात् उन्होंने अनुभव किया कि केवल प्रार्थना के द्वारा कार्य पूर्णतया सिद्ध नहीं होगा और देवताओं की प्रसन्नता के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त कुछ और करना आवश्यक है । इसके लिए उन्होंने यज्ञ करना आवश्यक समझा । " एक समय था जब मनुष्य के हृदय की स्वतंत्र इच्छा के आधार पर यज्ञों का प्रारम्भ हुआ । इसके द्वारा वे अज्ञात देवता को धन्यवाद देना चाहते थे और जीवन के प्रारम्भ से एकत्र हुए ऋण को कृतज्ञता के भाव से शब्दों और कार्यों के द्वारा उतारना चाहते थे ।"" अग्नि की पूजा, सोमरस का पान तथा अन्य विधियाँ इन यज्ञों के विशेष उल्लेखनीय कार्य थे । यज्ञों के समय ऋग्वेद के मंत्रों का पाठ होता था । वैदिक यज्ञों की विधि को शुद्ध रखने के लिए वेद के कुछ अंश एकत्र किए गए, जिनमें उस विधि के करने का कुछ संकेत प्राप्त होता था और उनकी इस प्रकार व्याख्या की गई जिससे उन्हें सरलतापूर्वक विधियों में स्थान मिल सके : इनको उसी प्रकार के मंत्रों के साथ एक स्थान पर संग्रह किया गया, उसी को यजुर्वेद कहा गया । इन सभी अवसरों पर ऋग्वेद के मंत्रों का
1 History of Ancient Sanskrit Literature by Max Muller.
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