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________________ काव्य और नाट्यशास्त्र के सिद्धान्त २८७ विभक्त किया है--वैदर्भी. गौड़ी और पांचाली । दण्डी के तुल्य उसने भी शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों का विवेचन किया है । दण्डी और वामन दोनों ने रस और नाट्यशास्त्र पर विवेचन नहीं किया है । वामन के बाद रीतिवाद का समर्थक और कोई नहीं हुआ है । दण्डी और वामन ने जिन विषयों का विवेचन किया है, बाद के लेखकों ने उन विषयों को अपने ग्रन्थों में सम्मिलित किया है। भामह राक्रिल गोमी का पुत्र था । उसने काव्यशास्त्र पर अलङ्कार नाम का ग्रन्थ लिखा है । बाद में इस ग्रन्थ का नाम लेखक के नाम से ही भामहालङ्कार कहा जाने लगा । उसने निम्नलिखित लेखकों के ग्रन्थों या उल्लिखित ग्रन्थों से उद्धरण दिए हैं या उनका नामोल्लेख किया है--न्यासकार, मेधावी, शकवर्धन, रत्नाहरण, रामशर्मा का अच्युतोत्तर अलङ्कारवंश और राजमित्र । न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि (७०० ई०) था। उसने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर वामन और जयादित्य की जो काशिका नाम की टीका है, उस पर न्यास नाम की टीका लिखी है । यह ज्ञात नहीं है कि भामह ने जिनेन्द्रबुद्धि का उल्लेख किया है या अन्य किसी पूर्ववर्ती न्यासकार का । अवन्तिसुन्दरी कथा में रामशर्मा एक कवि तथा दण्डी का मित्र उल्लिखित है। भामह ने उसी का उल्लेख किया है । दण्डी और रामशर्मा समकालीन थे । दोनों ७वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुए हैं। भामह ने अन्य लेखकों या ग्रन्थों का जो उल्लेख किया है, उनका परिचय प्राप्त नहीं हुआ है । कुछ विद्वानों का यह मत है कि दण्डी भामह के बाद हुआ है और उसने भामह के मन्तव्यों का उल्लेख किया है । ऐसा ज्ञात होता है कि दण्डी को अपने पूर्ववर्ती प्राचार्यों से काव्यशास्त्र के विषयों में जो कुछ प्राप्त हुआ था, उसने उसी बात को अपने शब्दों और अपनी शैली में लिख दिया है। उसने अपनी ओर से उसमें कुछ नहीं मिलाया है और न अपना विशेष मन्तव्य ही प्रकाशित किया है । ऐसा प्रतीत होता है कि दण्डी और भामह जिस मत के अनुयायी थे, वे उस मत के अनुयायी पूर्वाचार्यों के मतों से पूर्णतया परिचित थे । यहाँ यह
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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