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संस्कृत साहित्य का इतिहास
क्योंकि इस वर्ष राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष नृपतुङ्ग ने दण्डी के काव्यादर्श का कन्नड़ भाषा में अनुवाद किया है ।
Cost ने अपने पूर्ववर्ती लेखकों का उल्लेख नहीं किया है। उसने उनके नामोल्लेख के बिना उनके ग्रन्थों का उल्लेख किया है । उसने सेतुबन्ध और बृहत्कथा का उल्लेख किया है । उसका काव्यादर्श तीन परिच्छेदों में है । उसने प्रथम परिच्छेद में निम्नलिखित विषयों का विवेचन किया है-भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता, भाव और भाषा की दृष्टि से काव्य के भेद, अपने पूर्वाचार्यों के द्वारा स्वीकृत गद्य-काव्य की कथा और आख्यायिका के रूप में विभाजन का उग्ररूप से खण्डन, वैदर्भी और गौड़ी रीतियों की विशेषताओं का विस्तृत विवेचन । उसने वैदर्भी रीति को विशे
ता दी है। उसने द्वितीय परिच्छेद में प्रर्थालङ्कारों का विवेचन किया है और तृतीय परिच्छेद में शब्दालङ्कारों तथा यमक अलङ्कार का विशेष रूप में विवे
न किया है । उसने अलङ्कारों और रीतियों के महत्त्व पर बहुत प्रशंसनीय कार्य किया है । उसने गुणों और अलंकारों में विशेष अन्तर नहीं किया है । दण्डी को शैलो मनोहर और परिष्कृत है । उसका विषय-विवेचन पूर्णतया मौलिक है ।
वामन दण्डी के मन्तव्यों का बहुत घनिष्ठ अनुयायी था । वह कश्मीर के राजा जयापीड ( ७७६ - ८१६ ई० ) का आश्रित कवि था । उसने भवभूति के ग्रन्थों से उद्धरण दिए हैं । अतः उसका समय ८००ई० के लगभग मानना चाहिए | वह काव्यालङ्कारसूत्र का लेखक माना जाता है । इस ग्रन्थ में पाँच अध्याय १२ अधिकरण और ३१६ सूत्र हैं । इसमें उसने काव्यशास्त्र - संबंधी विषयों पर सूत्ररूप में नियम लिखे हैं । सूत्रों के बाद उनकी टीका के रूप में स्वलिखित वृत्ति है और उन नियमों के उदाहरण स्वरूप स्वनिर्मित तथा अन्य लेखकों से संकलित श्लोक आदि हैं । नियमों के सूत्ररूप से ज्ञात होता हैं कि अलङ्कारों के विषय में नियम सूत्ररूप में वामन से पूर्व भी विद्यामान थे । वामन का मत है कि काव्य की आत्मा रीति है । उसने रीतियों को तीन भागों में