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________________ काव्य और नाट्य शास्त्र के सिद्धान्त २८५ का सम्बन्ध है, नाट्यशास्त्र रस के परिपाक पर ही सबसे अधिक महत्व देता है । भरत ने दस गुणों और उपमा, रूपक, दीपक और यमक, इन चार अलङ्कारों को रस के परिपाक में मुख्य सहायक माना है । भरत ने दोषों का भी वर्णन किया है कि ये दोष नाटकादि में त्याज्य हैं। नाट्यशास्त्र पर बहुत-सी टोकाएँ लिखी गई हैं। इनमें से सबसे प्राचीन एक अज्ञात लेखक की टोका भरतटीका है। बाद के लेखकों ने इस टीका से जो उद्धरण दिए हैं, उनसे इस टीका का ज्ञान होता है । स्थाण्वीश्वर के राजा हर्ष (६०६६४८ ई०) और उद्भट (८०० ई०) ने नाट्यशास्त्र पर टीकाएँ लिखी है। मातृगुप्त, शंकुक (८४० ई०), भट्टनायक (६०० ई.) और अभिनवगुप्त ने भी नाट्यशास्त्र पर टीकाएँ लिखो हैं । इनमें से अभिनवगुप्त की टीका प्राप्य है, शेष लुप्त हो गई हैं। अग्निपुराण में काव्यशास्त्र के विभिन्न विषयों पर विवेचन है । विद्वानों का मत है कि इस पुराण का यह भाग ईसवीय सन् के प्रारम्भ के बहुत बाद लिखा गया है । इसमें मेधावी और रुद्र काव्यशास्त्र के प्राचार्य माने गए हैं । ये दोनों भी ईसवीय सन् के प्रारम्भ के बाद हुए होंगे। राजशेखर ने मेधाविरुद्र और जानकीहरण के लेखक कुमारदास का उल्लेख जन्मान्ध कवि के रूप में किया है। नाट्यशास्त्र के बाद काव्यशास्त्र पर सबसे प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थ दण्डी का काव्यादर्श है । भारतीय परम्परा दण्डो को काव्यादर्श और दशकुमारचरित इन दोनों ग्रन्थों का लेखक मानतो है । दण्डी के परिचय और समय के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । यह भी स्पष्ट नहीं है कि अवन्तिसुन्दरीकथा का लेखक भी यहो दण्डो है। यदि इन तीनों ग्रन्थों का लेखक एक ही है तो दण्डो का समय ७वीं शताब्दी ई० का उत्तरार्द्ध समझना चाहिए । दण्डी का समय ८५० ई० के बाद का नहीं माना जा सकता है, १ काव्यादर्श के समय के लिए देखो अध्याय १७ में दण्डी।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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