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________________ काव्य और नाट्य शास्त्र के सिद्धान्त २८३ कुटी नहीं हो सकती है। अतः यहाँ नदी से सम्बद्ध नदी का तट गङ्गा शब्द का अर्थ पर लिया जाता है, अर्थात् 'गङ्गा नदी के तट पर कुटिया।' जहाँ पर अभिधा और लक्षणा शक्ति से काम नहीं चलता है, वहाँ पर व्यंजना शक्ति से काम चलाया जाता है। व्यंजना शक्ति वहाँ पर विशेष रूप से काम में लाई जाती है जहाँ शब्द के मुख्य अर्थ के अतिरिक्त अन्य अर्थ भी बताया जाता है । दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि मुख्य अर्थ के साथ ही और अर्थ भी व्यंजना शक्ति के द्वारा बताया जाता है। यह अर्थ शब्द स्वयं मुख्यार्थ के द्वारा नहीं बता सकता है । इस अर्थ में यह ध्वनि-सिद्धान्त वैयाकरणों के स्फोट-सिद्धान्त से बहुत अधिक सम्बन्धित है और इस पर उसका बहुत अधिक प्रभाव है। ध्वनि या व्यंजना के सिद्धान्त के समर्थकों का मत है कि ध्वनि ही काव्य की आत्मा है । उनका मत है कि ध्वनि के बिना कोई भी काव्य निर्जीव समझना चाहिए। व्यंजना के द्वारा जो कुछ बताया जाता है, वह रस या अलङ्कार हो सकता है । यह अर्थ शब्द के अर्थ के द्वारा नहीं बताया जा सकता है। इसका अनुभव व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही होता है । अतएव इसका अनुभव प्रत्येक को नहीं हो सकता है। यह उन्हीं व्यक्तियों तक सीमित है, जिनका पूर्व जन्मों में अनुभव समान होता है । अतएव वे बातें जब इस जन्म में दुहराई जाती हैं तो वे उसका स्वाद लेते हैं । इस प्रकार के अनुभव जब रङ्गमंच पर अभिनय के द्वारा होते हैं, तब वे व्यक्ति इस अनुभव को अभिनेताओं का या अपना नहीं समझते, अपितु इसको सार्वभौम अनुभव मानते हैं। ऐसे सहृदय व्यक्ति अभिनयों को देखने या काव्यों को पढ़ने से जो अनुभव प्राप्त करते हैं, वह ब्रह्मानन्द के सुख के तुल्य होता है। अतएव नाटक काव्य आदि के देखने या पढ़ने से जो अनुभव होता है, वह दुःख होने पर भी अनुपम आनन्द प्रदान करता है। आनन्दवर्धन और प्रभिनवगुप्त इस ध्वनि मत के मुख्य समर्थक हैं। अभिनवगुप्त ने इस मत , को रसों तक ही सीमित करके सरल बनाया है । अलङ्कारों और अर्थ
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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