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________________ २८२ संस्कृत साहित्य का इतिहास सकता है। दर्शक में यह योग्यता होती है कि वह विशेष उदाहरण समझता है और जनसामान्य उसका आनन्द लेता है । अभिनवगुप्त का मत है कि दर्शक व्यंजना के द्वारा प्रानन्द का अनुभव करता है । रस-सिद्धान्त के समर्थक उपर्युक्त लेखक हैं । इनके अतिरिक्त रस सिद्धान्त के समर्थक रुद्रभट्ट, भोज, शारदातनय आदि हैं । 1 अलंकारवाद के समर्थक काव्य में सौन्दर्य के आधार तत्त्वों का विशेष रूप से विवेचन करते हैं, वे काव्य से रस के महत्त्व को स्वीकार करते हैं परन्तु उसे अलंकार से गौण मानते हैं । ये अलंकार शब्द और अर्थ पर आश्रित हैं, इनको शब्दालङ्कार, अर्थालङ्कार कहते हैं । भामह और दण्डी ही सबसे प्राचीन लेखक हैं जिन्होंने अलङ्कारों का विवेचन किया है । अलङ्कारों की संख्या क्रमशः बढ़ती चली गई और बाद के लेखकों ने उनकी संख्या दो सौ से अधिक बताई है । वक्रोक्तिवाद अलङ्कारवाद की ही एक शाखा है । वक्रोक्ति का अर्थ है किसी बात को घुमा-फिराकर कहना । इस मत के मानने वालों का कथन है कि अलङ्कार वक्रोक्ति के द्वारा ही पूर्णता को को पृथक् अलङ्कार माना जाने लगा । मुख्य भामह और कुन्तक हैं । | वक्रोक्ति समर्थकों में प्राप्त होते इस सिद्धान्त के ध्वनिवाद के समर्थक ध्वनित अर्थ अर्थात् व्यंग्य अर्थ को मुख्यता प्रदान करते हैं । यह सिद्धान्त शब्द और अर्थ के विवेचन पर आश्रित है । शब्दों के तीन प्रकार के अर्थ होते हैं -- वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य । जिन शक्तियों के द्वारा ये तीनों अर्थ बताए जाते हैं, उनको क्रमशः अभिधा, लक्षणा और व्यंजना कहते हैं । अभिवा शक्ति के द्वारा शब्द का मुख्य अर्थ बताया जाता है । लक्षणा शक्ति द्वारा गौण अर्थ बताया जाता है । जहाँ पर शब्द का मुख्य अर्थ लेने से काम नहीं चलता है वहाँ पर उस अर्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ लिया जाता है । जैसे -- गङ्गायां घोषः, गङ्गा नदी में कुटिया, यह मुख्यार्थं सङ्गत नहीं होता है, क्योंकि नदी में
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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