SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत नाटक . २२१ और वाक्पति आदि के ग्रन्थों में स्वप्नवासवदत्तम् का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें भास और उसके ग्रन्थों का सम्बन्ध अग्नि से बताया गया है । आलोचकों की परीक्षा के पश्चात् स्वप्नवासवदत्तम् को छोड़कर भास के अन्य नाटक प्रायः नष्ट होते गये । सम्भवत: पल्लव राजा नरसिंहवर्मा द्वितीय ( ६८०-७०० ई० ) के आश्रित कतिपय अभिनेताओं ने रंगमंच के लिए इनको अपनाया । इस राजा की उपाधि राजसिंह है। त्रिवेन्द्रमग्रन्थमाला में जो ये नाटक प्रकाशित हुए हैं, ये भास के नाटकों के रंगमंच के उपयोगी संस्करण प्रतीत होते हैं। इनमें अधिकांश नाटकों के भरतवाक्य में राजसिंह शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है । इससे ज्ञात होता है कि इन नाटकों का और पल्लव राजाओं का कुछ पारस्परिक सम्बन्ध है । जब पल्लव राज्य नष्ट हुआ तव ये नाटक तथा अन्य कुछ ग्रन्थ, जो पल्लव राजाओं के आश्रय में बने थे, मालाबार चले गये। अतएव यह संगत प्रतीत होता है कि भास के नाटक तथा पल्लव राजाओं के आश्रित कवि दण्डी की अवन्तिसुन्दरीकथा मालाबार में प्राप्त हो । यवनों के आगमन के पश्चात् ही संस्कृत नाटक लुप्त हो गये, यह विचार केवल कल्पनामात्र है । त्रिवेन्द्रम ग्रन्थमाला में प्रकाशित इन नाटकों को रंगमंचोपयोगी संस्करण ही समझना चाहिए, क्योंकि भास के नाम से उद्धृत जो श्लोक इन नाटकों में नहीं मिलते हैं, वे मूल बृहत् संस्करण में रहे होंगे। इन नाटकों में कुछ और अंश रहता तो ये पूर्ण ग्रंथ ज्ञात होते । अतः यह ज्ञात होता है कि ये नाटक भास के मूल नाटकों के रंगमंचोपयोगी संस्करण हैं । इनमें से कुछ नाटक मूल रूप में अवश्य भास के लिखे हए हैं, परन्तु सब उसके ही लिखे नहीं हैं । कुछ दक्षिण भारत के किसी विद्वान् के द्वारा बनाये हुए हैं। अतः भास को इन तेरहों नाटकों का रचयिता नहीं मानना चाहिए। कालिदास ने भास का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है, अतः भास उससे पर्ववर्ती होना चाहिए । अतएव भास का समय ३०० ई० पू० के लगभग मानना चाहिए।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy