________________
२२०
संस्कृत साहित्य का इतिहास नहीं करते थे, उन्होंने निम्नलिखित कारणों से इन नाटकों के भास की रचना होने का खंडन किया है.- (१) इन नाटकों में जिन कतिपय नाटकीय विशेषताओं का उल्लेख किया गया है, वे विशेषताएँ भास के अतिरिक्त अन्य नाटककारों की रचनाओं मत्तविलास-प्रहसन आदि में भी प्राप्त होती हैं। ये विशेषताएँ दक्षिण भारत के नाटकों में उपलब्ध होती हैं, अतः इन विशेषताओं के आधार पर इन सबको भास की रचना मानना उचित नहीं है । इन नाटकों में जो अपाणिनीय प्रयोग प्राप्त होते हैं, उनको प्रतिलिपिकर्ताओं की भूल समझनी चाहिए । (२) भास को स्वप्नवासवदत्तम् नाटक का रचयिता होने का निषेध नहीं किया जा सकता है। भास कई नाटकों का रचयिता है । स्वप्नवासवदत्तम् को छोड़ कर अन्य भास के नाटकों का नाम किसी ने उल्लेख नहीं किया है । साहित्यशास्त्रियों ने स्वप्नवासवदत्तम् को ही भास की रचना बताया है, उसके अन्य किसी नाटक का उन्होंने उल्लेख नहीं किया है। आजकल जो स्वप्नवासवदत्तम् उपलब्ध है, उसमें वे सभी श्लोक प्राप्त नहीं होते हैं, जिनको साहित्यशास्त्रियों ने भास के श्लोक कहकर उल्लेख किया है । अत: इस स्वप्नवासवदत्तम् को भी भास की रचना नहीं मानना चाहिए।
कुछ विद्वान् जो मध्यम मार्ग का प्राश्रय लेने वाले हैं, उनका मन्तव्य है कि त्रिवेन्द्रम ग्रन्थमाला में जो ग्रन्थ प्रकाशित हए हैं, वे भास के मल ग्रन्थों के संक्षिप्त संस्करण हैं । ये संक्षिप्त संस्करण रंगमंच की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बनाये गये थ। कालिदास ने मालविकाग्निमित्र में भास, सौमिल्ल और कविपुत्र का जो उल्लेख किया है तथा उनकी प्रसिद्धि का वर्णन किया है, उसको उनको प्रशंसा के रूप में नहीं समझना चाहिए, अपितु कालिदास का यह कथन उनकी त्रुटियों के प्रदर्शन के लिए एक प्रयत्न समझना चाहिए । कालिदास के नाटकों के पश्चात् भास के नाटकों को वह प्रसिद्धि नष्ट होती गयी । भास के नाटकों की आलोचकों ने कठोर परीक्षा की और उनमें से केवल स्वप्नवासवदत्तम् ही उस परीक्षा में खरा उतरा। राजशेखर