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________________ संस्कृत नाटक, उनकी उत्पत्ति, उनकी विशेषताएँ और उनके भेद २१३ वार्तालाप के रूप में हैं, जिनसे दर्शकों को घटना का ज्ञान हो जाता है । विष्कम्भक दो प्रकार का होता है--१. शुद्ध विष्कम्भक, जब मध्यम श्रेणी के संस्कृत में वार्तालाप करने वाले पात्र इसमें भाग लेते हैं । २. मिश्र विष्कम्भक जब मध्यम श्रेणी के पात्र संस्कृत में वार्तालाप करते हैं और निम्न श्रेणी के पात्र प्राकृत में वार्तालाप करते हुए इसमें भाग लेते हैं। इसमें संस्कृत और प्राकृत दोनों के प्रयोग करने वाले पात्र भाग लेते हैं । प्रवेशक में केवल प्राकृत बोलने वाले निम्न श्रेणी के पात्र भाग लेते हैं । यह प्रथम अंक के प्रारम्भ में नहीं आता है । चूलिका पर्दे के पीछे से भाषण के रूप में होता है । यह भाषण दो अंकों की कथा को जोड़ता है । अंकावतार में पहले अंक में पात्र आगामी अंक की कथा का निर्देश कर देते हैं और अगला अंक पूर्व अंक का ही चालू रूप होता है । अंकास्य उसे कहते हैं जहाँ पर एक ही अंक से आगामी अंकों की कथा संक्षेप में बता दी जाए । इसके अतिरिक्त और कुछ नाटकीय निर्देश हैं, जैसे--अपवार्य, आत्मगतम्, जनान्तिकम् आदि । प्रात्मगतम् अर्थात् पात्र मन में कोई बात कहता है, जिसको अन्य पात्र नहीं सुन पाते हैं। शेष दो में पात्र इस प्रकार बात करते हैं कि वह अन्य पात्र न सुन सके । यह बात दर्शक ही सुन पाते हैं । नये पात्र के प्रवेश की सूचना रंगमंच पर विद्यमान पात्र देता है । कभी-कभी जब किसी पात्र का प्रवेश अत्यावश्यक होता है तो वह स्वयं पर्दा हटाकर रंगमंच पर आ जाता है। कथानक को प्रगति देने के लिए कतिपय उपाय किए गये हैं, जैसे प्रेम-पत्र का लिखना, प्रेमी का चित्र बनाना, नाचना, एक खेल में ही दूसरे खेल का प्रारम्भ करना आदि । पुरुष का अभिनय स्त्री और स्त्री का अभिनय पुरुष करे, इसकी भी स्वीकृति दी गयी है जैसा कि मालतीमाधव में है । नाटक की सुखान्त समाप्ति के लिए अलौकिक तत्त्वों का भी आश्रय लिया जाता है, जैसे शाकुन्तल, विक्रमोर्वशीय और नागानन्द आदि में । कुछ नाटकों में दैवी शक्ति वाले जीव भी भाग लेते हैं । प्रत्येक नाटक भरतवाक्य के साथ समाप्त होता है । भरत-वाक्य स्तुति-वाक्य के रूप में होता है, यह नायक या अन्य कोई मुख्य पात्र कहता है ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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