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संस्कृत साहित्य का इतिहास नायिका भी होती है । कुछ विशेष प्रकार के नाटकों में अन्य स्त्रियाँ भी नायिका हो सकती हैं । प्रेमकथा वाले नाटकों में साधारणतया दो या अधिक प्रतिद्वन्द्वी होते हैं । ऐसे नाटकों में नाटककार को अवसर प्राप्त होता है कि वह दो प्रतिस्पर्धी रानियों की तुलना करे और उनकी विषमताओं को दिखाकर उनका चरित्र-चित्रण करे । कालिदास का मालविकाग्निमित्र इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। ये स्त्रीपात्र प्राकृत में बात करते हैं । मालविकाग्निमित्र और मालतोमाधव में संन्यासिनी कौशिकी और कामन्दको दोनों प्रेमियों का सम्बन्ध कराने में बहुत सहायता प्रदान करती हैं। ये दोनों संस्कृत में वार्तालाप करती हैं । यद्यपि अधिकांश नाटकों में चरित्रचित्रण अच्छा नहीं हुआ है, तथापि कालिदास, शूद्रक और भट्ट नारायण के नाटक चरित्र-चित्रण की दृष्टि से बहुत उत्तम हैं। इनमें प्रत्येक पात्र का स्वतन्त्र व्यक्तित्व है।
प्रत्येक नाटक इष्टदेवता के स्तुतिपाठ के साथ प्रारम्भ होता है । इसको नान्दीपाठ कहते हैं । यह इस बात का सूचक है कि पर्दे के पीछे होने वाले प्रारम्भिक मांगलिक कार्य, जिसको पूर्वरंग कहते हैं, समाप्त हो गये हैं। नान्दीपाठ के बाद सूत्रधार रंगमंच पर आता है । कुछ नाटकों में सूत्रधार ही रंगमंच पर आकर नान्दीपाठ करता है। सूत्रधार अपनी पत्नी नटो या अपने सेवक मारिष से नाटक, उसके लेखक और उसके अभिनय के विषय में वार्तालाप करता है। इसके पश्चात् वह इनके साथ रंगमंच से चला जाता है। इस अंश को प्रस्तावना, आमुख या स्थापना कहते हैं। संस्कृत नाट्य के नियमानुसार रंगमंच पर इन कार्यों का दिखाना सर्वथा वजित है-- मृत्यु आदि दुःखद घटनाएँ, युद्ध, शाप देना, शयन, चुम्बन आदि । उपर्युक्त दृश्य तथा आकाश में उड़ना आदि दृश्य जो कि कठिनाई से दिखाये जा सकते थे और ऐसे दृश्य जिनका अंक के मुख्य भाग में दिखाना आवश्यक नहीं था, इन दृश्यों को पाँच प्रकार से दर्शकों को बताया जाता था-- विष्कम्भक, प्रवेशक, चुलिका, अंकावतार और अंकास्य । इनमें से प्रथम दो