________________
२१४
संस्कृत साहित्य का इतिहास प्रत्येक नाटक अंकों में विभाजित होता है और अंक दृश्यों में । ये दृश्य स्पष्ट रूप से विभक्त नहीं होते हैं । अंक के अन्त में अभिनेता रंगमंच से चले जाते हैं । साधारणतया नाटकों में पाँच अंक होते हैं, परन्तु कतिपय नाटकों में एक से दस तक ग्रंक है । महानाटक में १४ अंक है। पात्रों की संख्या के विषय में कोई नियम नहीं है । शाकुन्तल में ३० पात्र हैं... वेणीसंहार में ३२, मृच्छकटिक में २६, मुद्राराक्षस में २४, विक्रमोर्वशीय में १८. मालतीमाधव में १३ और उत्तररामचरित में १० ।
पाश्चात्य आलोचकों का कथन है कि भारत में रंगमंच या चित्रशाला आदि नहीं थे । उनका यह कथन असत्य है, क्योंकि नाटकों में ही चित्रशाला, संगीतशाला और प्रेक्ष-गृह आदि का उल्लेख है । नाट्यशास्त्र में रंगमंच, नेपथ्य, दर्शकगृह आदि की लम्बाई-चौड़ाई आदि का विस्तृत वर्णन है । शारदातनय के भावप्रकाशनम् में तीन प्रकार की नाट्यशालाओं का उल्लेख है । ___ संस्कृत-नाटक जीवन की अवस्था या परिस्थिति का अनुकरण प्रस्तुत करते हैं, जीवन के किसी कार्य विशेष का अनुकरण नहीं । अतएव इनमें नाटकीय निर्देश प्रायः प्राप्त होता है कि नाटयित्वा अर्थात् इस प्रकार का नाट्य करके । मनुष्य वास्तविक जीवन में जिस प्रकार का कार्य करता है, अभिनेता उसी का अनुकरण करते हैं । रथ पर चढ़ना, पेड़ों को पानी देना या शिकार खेलना आदि कार्यों का निर्देश मात्र किया जाता है । दर्शक उस क्रिया को स्वयं समझ । रंगमंच के पीछे जो पर्दा पड़ा रहता है, उस पर प्राकृतिक दृश्य बने होते हैं। वह जनता के लिए प्राकृतिक शोभा प्रस्तुत करता है । शिक्षित जनता रंगमंच पर होने वाली घटनाओं की वास्तविकता को अनुभव करती है । रंगमंच पर दृश्य-संबंधी विस्तृत प्रबंध करने में कुछ कठिनाइयाँ हैं, अतः साधारण दृश्यों का प्रबंध किया जाता है । शिक्षित जनता नाटक में रस का उत्तम परिपाक देखना