________________
नीति-कथाएँ
१९७
पुनर्जन्म के सिद्धान्त से भी इस बात का समर्थन होता है । महाभारत में भी इस प्रकार की बात का उल्लेख मिलता है । विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा है कि वह पांडवों को न मारे, नहीं तो वह सोने का अंडा देने वाले पक्षी को मारेगा। बौद्ध जातकों में भी ऐसी विशेषता प्राप्त होती है। इस प्रकार का साहित्य ई० सन् से पूर्व विद्यमान था ।
ये कथाएँ मनुष्य के राजनीतिक जीवन तथा अन्य प्रकार के दैनिक जीवन का वर्णन करती हैं । आजकल जो नीति-ग्रन्थ प्राप्त हैं, उनसे ज्ञात होता है कि वे राजकुमारों को राजनीति सम्बन्धी शिक्षा देने के लिए बनाये गये थे । इस उद्देश्य के साथ ही इनमें जीवन के बुरे पक्ष का भी भली भाँति स्पष्टीकरण किया गया है--जैसे, ब्राह्मणों के द्वारा छल-प्रपंच, कपट और लोभ का व्यवहार, अन्तःपुर के छल-प्रपंच और स्त्रियों की दुराचारवृत्तिता आदि । इसी प्रकार जीवन के अच्छे पक्ष का भी वर्णन है, जैसे--ब्राह्मणों की पवित्रता और उनका गौरव, क्षत्रियों के लिए आदेश कि वे अपने कर्तव्य का तत्परता के साथ पालन करें, स्त्रियों के लिए शिक्षा कि वे पतिव्रता हो । दुर्गणों को सुन्दर व्यंग्य के साथ प्रकट किया गया है ।
प्रचलित कहानियाँ और नीति-कथाओं के स्वरूप में कोई निश्चित अन्तर नहीं प्रतीत होता है । तथापि इतना कहा जा सकता है कि प्रचलित कहानियों में कहानी को अधिक महत्त्व दिया जाता है और नीति-कथानों में नीति-सम्बन्धी विषय को। ___ नीति-कथा के मुख्य प्रतिनिधि ग्रन्थ पंचतन्त्र और हितोपदेश हैं । पंचतन्त्र के बहुत से संस्करण हैं और उनमें थोड़ा अन्तर है । ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है कि ये सभी संस्करण स्वतन्त्र रूप से उत्पन्न हुए हैं । ये सभी ग्रन्थ एक मूल-ग्रन्थ से निकले हैं, जो कि आजकल अप्राप्य है । कुछ साक्षियों के आधार पर मूल-ग्रन्थ के स्वरूप का अनुमान हो सकता है। पंचतन्त्र की एक संस्कृत में लिखी मूल प्रति का अनुवाद फारस के बादशाह नौशीरवाँ के लिए उसके हकीम बुजों ने पहलवी भाषा में किया । इस पहलवी संस्करण का