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संस्कृत साहित्य का इतिहास
अनुवाद सीरिया की भाषा में एक बुद नामक व्यक्ति ने ५७० ई० में किया ! ७५० ई० में पहलवी संस्करण का अनुवाद अरबी भाषा में हुआ । योरोनीय भाषाओं में जो इसके अन्य अनुवाद हुए हैं, वे अरबी अनुवाद पर प्राश्रित हैं, जैसे - ११०० ई० में हिब्रू भाषा में अनुवाद, १२७० ई० में लेटिन में अनुवाद, १४८० ई० में जर्मन भाषा में अनुवाद, १५५२ ई० में इटालियन भाषा में अनुवाद, १६७८ ई० में फ्रेंच भाषा में अनुवाद, १०८० ई० में यूनानी भाषा में अनुवाद, १२वीं शताब्दी में फारसी भाषा में अनुवाद, इसके बाद अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए | पंचतन्त्र का मूल संस्कृत वाला संस्करण तथा पहलवी वाला संस्करण नष्ट हो चुका है । इससे इतना कहा जा सकता है कि पहलवी वाले संस्करण से बहुत समय पूर्व संस्कृत वाला संस्करण बन चुका था । इस पहलवी वाले संस्करण का ५७० ई० में सीरिया की भाषा में अनुवाद हुआ है । अतः मूल पंचतन्त्र की रचना का काल तृतीय शताब्दी ई० मानना उचित है । इस समय संभवतः भारतीय क्षत्रियों ने विदेशियों को हटाकर हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने का प्रयत्न किया होगा और उन्हें इस प्रकार के ग्रन्थ की आवश्यकता पड़ी होगी । पाश्चात्य विद्वान् इसका संबंध कश्मीर या मगध से जोड़ते हैं । डा० कीथ के मतानुसार इसका रचयिता वैष्णव विद्वान् था | निश्चित सूचना के प्रभाव में इन सभी विचारों को केवल कल्पनामात्र समझना चाहिए । बौद्ध धर्म प्राय: हिंदू धर्म से समानता रखता
अतः इन विचारों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए कि मूल पंचतन्त्र पर बौद्ध जातक-ग्रंथों का प्रभाव पड़ा है । पंचतन्त्र का मूल नाम क्या था, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । पहलवी अनुवाद में कलिलंग और दमनग नाम तथा अरबी अनुवाद में कलिलह और दमनह नाम से संस्कृत कर्कटक और दमनक का अनुमान लगाया जा सकता है । मूल ग्रन्थ का यह नाम था, यह सन्देह की बात है, क्योंकि कर्कटक और दमनक पंचतंत्र के केवल प्रथम तंत्र में प्राप्य हैं, अन्य तंत्रों में नहीं । यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि पहलवी वाला अनुवाद केवल प्रथम तन्त्र का ही अनुवाद था । अतः मूलग्रंथ का वास्तविक नाम अनिश्चित ही है । बाद के भारतीय संस्करणों