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कालिदास के बाद के कवि
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के लिये रावणवध काव्य लिखा है । दोनों लेखकों का काल भिन्न है, अतः यह एकता स्वीकार नहीं की जा सकती है। भट्टि का काल लगभग ६५० ई० है तथा भर्तृहरि का लगभग ४०० ई० है ।
यह रावणवध भक्तिकाव्य होने के अतिरिक्त व्याकरण के नियमों और अलंकारों का उदाहरण भी है। इसका १३वाँ सर्ग इस रूप में लिखा गया है कि वह संस्कृत और प्राकृत दोनों रूपों में पढ़ा जा सकता है । भट्टि की शैली सरल है। इसमें लम्बे समास नहीं है। यह वैदर्भी रीति में लिखा गया है । इसका लेखक के नाम से ही प्रचलित नाम 'भट्टिकाव्य' है। इसमें लेखक ने २२ सर्गों में राम की कथा का वर्णन किया है । ___ माघ राजा श्रीवर्मल के आश्रित उच्च राजकर्मचारी सुप्रभदेव का पौत्र और दत्तक का पुत्र था। ६२५ ई० का राजा वर्मलात का एक शिलालेख प्राप्त होता है । संभवतः वर्मलात और श्रीवर्मल एक ही व्यक्ति हैं। आनन्दवर्धन ( ८५० ई० ) नृपतुंग ( ८५० ई० ) और राजशेखर ( ६०० ई० ) ने माघ का उल्लेख किया है। माघ के ग्रन्थ शिशुपालवध' में काशिकावृत्ति पर जिनेन्द्रबुद्धिकृत ( ७०० ई० ) न्यास नामक टीका का उल्लेख मिलता है। माघ के टीकाकार मल्लिनाथ इस बात का समर्थन करते हैं । अतः उसका समय ७०० ई० के लगभग मानना चाहिए। कतिपय विद्वानों की कल्पना है कि वह या तो वैश्य था या बौद्ध । ___ माघ ने २० सर्गों में शिशुपालवध नामक महाकाव्य लिखा है । इसमें युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ का वर्णन है और श्रीकृष्ण के द्वारा शिशुपाल के वध का वर्णन है। यह भारवि के किरातार्जुनीय के अनुकरण पर बनाया गया है । दोनों का प्रारम्भ श्रियः शब्द ( अर्थात् श्री ) से होता है और दोनों में मंगलाचरण का श्लोक नहीं है । राजनीतिक विवाद, पर्वतीय दृश्य, मदिरासेवियों का दल, रण-दृश्य आदि का वर्णन दोनों महाकाव्यों में एक ही क्रम से हुआ है। भारवि के तुल्य ही माघ ने भी
१. शिशपालवध २--११२ ।