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________________ ८० संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झांकियाँ देवियों की स्तुतियाँ उपलब्ध होती हैं, जो नितान्त सूक्ष्म शरीरिणी हैं तथा जिनका सूक्ष्म विचारों से प्रगाढ सम्बन्ध है । ऐसी देवियों में श्रद्धा, अनुमति', इत्यादि प्रमुख हैं । इन देवियों का अध्ययन हमें विश्वास दिलाता है कि ऋग्वैदिक ऋषि भिन्न-भिन्न सूक्ष्म पदार्थों की खोज में थे, जो उन्हें काव्य के अन्वेषण में साहाय्य प्रदान कर सकें। काव्य के लिए मौलिक अपूर्व बुद्धि की आवश्यकता होती है। इस अपूर्व बुद्धि को प्राप्त करने के लिए ऋषियों ने सूक्ष्म-विचारों पर दैवत्वारोपण किया और उन की अनेकशः आराधना किया। इस अन्वेषण में सूनृता", सूर्या, आदि की देवी-रूप में महती आराधना हुई और इन्हें अपूर्व बुद्धि के काव्य की देवियाँ स्वीकार किया गया। गेल्डनर 'सूर्या' अथवा 'सूर्यस्य दुहिता' (ऋ० १०.७२.३) में इसी प्रकार की उद्भावना स्वीकार करते हैं और वह उसे काव्य तथा गीत की अपूर्व बुद्धि स्वीकार करते हैं । कुछ इसी प्रकार की विचार-धारा सरस्वती से संयुक्त है, जहाँ उसे 'चोदयित्री सुनतानां चेतन्ती सुमतीनाम्२२ कहा गया है । इस प्रकार यहाँ सरस्वती एवं सूर्या में अत्यन्त निकटता है। वैदिकेतर साहित्य में सरस्वती एक देवी एवं काव्य की संरक्षिका मानी गई है, परन्तु इसका ब्रीज ऋग्वेद में भी प्राप्त होता है, क्योंकि कतिपय स्थलों पर उसे बुद्धि की संरक्षिका माना गया है। इस प्रसङ्ग में ऋग्वेद में एक स्थल पर उसे 'धीनाम् पवित्री२३ कहा गया है । सूर्या सर्वप्रथम ऋग्वैदिक काव्य की एक देवी थी, उस ने बाद में सचेतन काव्य का रूप धारण कर लिया और सरस्वती काव्य की देवी बन गई। वैदिक देव-कथा में सूर्या को वाक् माना गया है तथा यह भी ध्यातव्य है कि वाक् सूर्या तथा सरस्वती का पर्याय है । इस सम्बन्ध में हम निघण्टु के काल को रेखाङ्कित कर सकते हैं, जहाँ सूर्या तथा सरस्वती का समीकरण हुआ है तथा जहाँ सूर्या का व्यक्तित्व सरस्वती में मिल गया है । यह बात सूर्या तथा सरस्वती के वाक् कहे जाने से स्वतः स्पष्ट है ।२५ ४. सरस्वती और ग्रीक म्यूजेज की समानताएँ : 'म्यूज़' ग्रीक मेन (men) से बना है, जिसका अर्थ सोचना अथवा याद करना १८. ऋ० १०.१५१.५ १६. वही, १०.५६.६,१६७.३ २०. वही, १.४०.३; १०.१४१२ २१. वही, ६.७२.३ २२. तु० सायण, माधव, विल्सन और ग्रीफिथ वही, १.३.११ २३. वही, ६.६१.४ २४. एस० एस० भावे, 'दि कान्सेप्शन ऑफ म्यूज़ ऑफ पोयिट्री इन दि ऋग्वेद २५. निघण्टु, १.११
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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