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________________ ५८ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ भाव को व्यक्त करती हैं। उनका बहना एवं पृथिवी का सिंचन परोपकार - हेतु ही होता है । अपने इस कार्य द्वारा वे मानव की समृद्धि का वर्धन करती हैं । वे मानवजाति का पालन-पोषण उसी प्रकार करती हैं, जैसे माँ अपने बच्चों का किया करती है । सम्भवत: इन्हीं कारणों से उनको जगन्माता ( विश्वस्य मातरः ) कहा गया है'। सामान्यरूप से यह सभी नदियों के विषय में ज्ञातव्य है । सरस्वती के विषय में विशेष कथन निम्न है । प्रवाह के दृष्टिकोण से पुराणों में दो प्रकार की नदियों के वर्णन मिलते हैं । एक वे जो केवल वर्षा-काल में प्रवाहित होने वाली हैं तथा दूसरी वे जो सतत् प्रवहमान रहती हैं । सरस्वती दूसरी कोटि में आती है । वामनपुराण का कथन है कि केवल सरस्वती ही सतत् प्रवाहिनी नदी है । अन्य नदियाँ केवल वर्षा काल में बहती हैं, परन्तु सरस्वती कालातिशायिनी है " वर्षाकालवहाः सर्वा वर्जयित्वा सरस्वतीम् ।"" सरस्वती की इसी गतिविशेष को ध्यान में रखकर सम्भवतः पुराणों ने उसे 'प्रवाह संयुक्ता', ' 'वेगयुक्ता', 'स्रोतस्येव" इत्यादि गत्यनुरूप पौराणिक उपाधियों से अभिहित किया गया है । सरस्वती के ऋग्वैदिक विशेषण 'नदीतमा" द्वारा यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि वह निःसंदेह रूप से श्रेष्टतम ऋग्वैदिक नदी थी। पुराणों ने भी सरस्वती की इस वैदिक मर्यादा की रक्षा की है । यहाँ उसे 'महानदी" कहा गया है । महानदियों की कुछ अपनी निजी विशेषताएँ होती हैं, जिनका छोटी नदियों में अभाव पाया जाता है । छोटी नदियाँ या तो बड़ी नदियों से निकलती हैं अथवा पर्वतों से । बड़ी नदियों से निकलने पर उनकी शाखा नदियाँ कहलाती हैं । विपरीतावस्था में पर्वतों से निकल कर बड़ी नदियों में मिल जाती हैं । इन दोनों दशाओं में उनका जीवन अल्पकालिक अथवा अल्पमार्ग यावत् होता है. परन्तु बड़ी नदियों के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता । वे पर्वतों से निकलकर अन्ततोगत्वा समुद्र में जा मिलती हैं, अत एव उनका सम्बोधन 'समुद्रगा उचित ही है । ऋग्वैदिक युग में सरस्वती इसी प्रकार की नदी १. तु० डॉ० रामशङ्कर भट्टाचार्य, इतिहास - पुराणा का अनुशीलन ( वाराणसी, १९६३), पृ० २१६ २. वही, पृ० २१६ ३. वही, पृ० २२३ ४. वामनपुराण, ३४.८ ५. वही, ३३.१ ६. वही, ३७.२२ ७. ब्रह्म० पु० २.७.३ ८. ऋग्वेद, २.४१.१६ 'अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति ।' ६. वामनपुराण, ३७.३१; ४०.८; भागवतपुराण ५.१६.१८ १०. डॉ० रामशङ्कर भट्टाचार्य, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० २२३
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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