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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ --------- माइमालोजी, स्वां संस्करण (राउटलेज एण्ड केगन पाल लण्डन, १९५७), पृ० ३२६; (३६) ऐ० आ० ३.१.६; (३७) तु० ए० बी० कीथ, दि रिलीजन एण्ड फिलासोफी
ऑफ दि वेद एण्ड उपनिषत्स, भाग-२ (लण्डन, १९२५), पृ० ४३८; जे० डाउसन, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० ३३०; (३८) श० ब्रा० ४.१.३.१-६; (३६) तु० ए० बी० कीय, पूर्वोद्धृत ग्रंय, पृ० ४३८; (४०) के० सी० पाण्डेय, अभिनवगुप्ता, माग-२ (चौ० वाराणसी, १६३५), पृ० ३६; (४१) अथर्व० ६.१००. (४२) विल्सनकृत टिप्पणी ऋ० १.१३.१; (४३) वही, १.१४२.६; (४४) वही, १.१४२.६; (४५) तु० विल्सनकृत टिप्पणी ऋ० १.१३.६; (४६) श्री अरविन्दो, ऑन द वेद (पाण्डिचेरी, १९५६), पृ० ११०; (४७) ऋ० ६.६१.१२; (४८) तु० ऐ० ब्रा० २०; (४६) १० के० सी० पाण्डेय, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ३६-४५; (५०) सूर्यकान्त, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १२८ ।