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________________ -३ सरस्वती के कतिपय ऋग्वैदिक विशेषणों की विवेचना ऋग्वेद में सरस्वती से सम्बद्ध अनेक विशेषण प्रयुक्त हैं । उनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनके विषय में हम बहुधा सुना करते हैं, पर कुछ ऐसे भी हैं, जो हमारे होते हुए भी चिर नूतन एवं रहस्यमय प्रतीत होते हैं। उनका विवेचन हमारी इच्छा को क्षणिक संतुष्ट ही कर पाएगा, चिर संतोष लाभ सहज न होगा । ये विशेषण यत्र-तत्र अपने भिन्न क्रमों एवं रूपों से 'सरस्वती' नाम को अङकृत करते हैं । मुख्य रूप से ये निम्नलिखित हैं : -- १. ऋतावरी, २. पावका, ३. घृताची, ४. अकवारी, ५. चित्रायुः, ६. हिरण्यवर्तनी, ७. घोरा, ८. वृत्रघ्नी, ६. अवित्री, १० असुर्या, ११. पारावतघ्नी, १२. धरुणमायसी पूः, १३. विसखा इव, १४. नदीतमा, १५. देवितमा, १६. तन्यतुः, १७. आप्रप्रुषी, १८. बृहती १६. रथ्येव, २०. इयाना, २१ राया युजा, २२. शुचिः, २३. वाजिनीवती, २४. सप्तस्वसा, २५. सप्तधातुः, २६. सप्तथी, २७. त्रिषधस्था, २८. मरुत्सखा, २६. सख्या ३०. उत्तरा सखिभ्यः, ३१. सुभगा, ३२. वीरपत्नी, ३३. वृष्णः पत्नी, ३४. प्रियतमा, ३५. प्रिया, ३६. मरुत्वती, ३७. भद्रा, ३८. पावीरवी, अथवा ३६. पावीरवी कन्या, ४०. मयोभू, ४१. अम्बितमा, ४२. सिंधुमाता, इत्यादि । उपर्युक्त इन्हीं विशेषणों में से हम ने केवल चार विशेषण - १. सिंधुमाता, २. सप्तस्वसा, ३. घृताची, और ४. पावीरवी को प्रस्तुत लेख का विषय बनाया है और उन पर पूर्ण प्रकाश डालने का प्रयास किया है । इनमें से कुछ विशेषण तत्कालीन सामाजिक, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक स्थिति पर भी प्रकाश डालते हैं, जिसका सङकेत स्थानानुसार कर दिया गया है । १. सिंधुमाता पूरे ऋग्वेद में सरस्वती के लिए यह विशेषण केवल एक बार प्रयुक्त हुआ है । इसकी व्याख्या विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की है । श्रीमत्सायणाचार्य इसे 'अपां मातृभूता', ऋगर्थदीपिकाकार श्रीवेंकटातनूद्भव श्रीमाधव 'सिंधूनां माता', ग्रीफिथ 'जलार्णवों की माता' तथा गेल्डनर, जिसकी माँ सिंधु है, ऐसा अर्थ करते हैं । ये टीकाकार केवल इतने ही अर्थमात्र से संतोष-लाभ करते हैं, जबकि श्रीविल्सन के कुछ अधिक शब्द हमारी प्रशंसा के पात्र हैं । उनके विचार से 'सिंधुमाता' का अर्थ 'सिंधु की माँ है' और ये अपनी इस विचारधारा को टिप्पणी ऋ० ७.३६.६ में स्पष्ट करते हुए स्कालियास्ट के बिलकुल समीपस्थ दृष्टिगोचर होते हैं, जिन्होने सरस्वती १. ऋग्वेद, ७. ३६६
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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