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________________ ६४ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झांकियां ----- में तीन लोकों (रजांसि) की कल्पना पाई जाती है तथा वे तीन लोक पृथिवी, आकाश तथा धुलोक हैं। ये तीनों देवियाँ इन तीनों लोकों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। ऋग्वेद के कतिपय मंत्रों में सरस्वती का आवाहन विभिन्न देवियों के साथ हुआ है । यह आवाहन सामान्य रूप में है तथा अदिति', गुङ्ग', सिनीवाली', राका', इन्द्राणी', वरुणानी', ग्नाः, पृथिवी", पुरन्धी इत्यादि के साथ हुआ है। सरस्वती का विशेष सम्बन्ध इला तथा भारती से है। इन्हीं से ऋग्वैदिक देवियों का विक् है, जो वैदिकेतर से भिन्न है। इस त्रिक पर सम्यक् विचार करने के पूर्व यह अपेक्षित प्रतीत होता है कि उन देवियों पर भी विचार कर लिया जाये, जिन के साथ सरस्वती का गहरा सम्बन्ध है। सरस्वती का वर्णन ऋग्वेद में अदिति, गुङ्ग , सिनीवाली, राका, इन्द्राणी, वरुणानी, पृथिवी, इत्यादि के साथ नितान्त स्वतंत्र रूप से हुआ है । पुरन्धी, धीः तथा ग्नाः के साथ उस का अपेक्षाकृत सम्बन्ध गहरा है । ऋग्वेद के एक मंत्र में सरस्वती का धीः के साथ वर्णन उपलब्ध होता है । इस सम्बन्ध में कहा गया है कि वह सरस्वती सौभाग्य-प्रदान करे तथा धी: के साथ पूजकों की वाणियों का श्रवण करे : "शं सरस्वती सह धीभिरस्तु ।"१२ इसी प्रकार पुरन्धी के साथ भी स्तुति पाई जाती है : "शृण्वन् वचांसि भे सरस्वती सह धीभिः पुरन्ध्या ।१२ इस प्रकार सरस्वती का आवाहन धीः के साथ दो बार हुआ है । इस से सरस्वती तथा धीः का घनिष्ठ सम्बन्ध प्रकट होता है । धीभिः का अर्थ विभिन्न प्रकार से किया गया है । सायण ने इस का अर्थ "स्तुतिभिः कर्मभिर्वा", ग्रीफिथ् “पवित्र विचार" अथवा "चेतन विचार", (Holy thoughts or Devotions personified) और विल्सन "पवित्र आचार" (holy - ३. ऋग्वेद, १.८६.३; ७.३६.५; १०.१५.१ ४. वही, २.३२.८ . ५. वही, २.३२.८; १०.१८४.२ ६. वही, २.३२.८; १.४२.१२ ७. वही, २.३२.८ ८. वही, २.३२.८ ९. वही, ५.४६.२; ६.४६.७ १०. वही, ८.५४.४ ११. वही, १०.६५.१३ १२. बही, ७.३५.११ १३. वही, १०.६५.१३
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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