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________________ –१२– ऋग्वेद में देवियों का त्रिक भारतीय पुराण कथा में सरस्वती का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इस पुराण - कथा में इस देवी के साथ अनेक विचित्रताएं संयुक्त हैं, जो उसके पेचीदे चरित्र के विकास में एक-एक करके जुड़ी हैं । फलतः इस देवी के चरित्र ने भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों का ध्यानाकर्षण किया है तथा उन्होंने अपने-अपने ढंग से इसके अपूर्व चरित्र पर विचार किया है । यह बात सत्य है कि ऋग्वेद में इस देवी का मूर्तिकरण नहीं हुआ है, जैसा कि अन्यत्र पुराणों तथा तदेतर साहित्य में उपलब्ध होता है । वह वैदिकेतर साहित्य में मुख्यतः एक देवी के रूप में वर्णित है । ऋग्वेद में भी मुख्यतः एक देवी के रूप में चित्रित है, परन्तु कुछ मंत्र उसे नदी के रूप में भी प्रस्तुत करते हैं । ऋग्वेद में देवी के रूप में उस की मूर्तिवत्ता कहीं-कहीं अभिव्यक्त होती है, परन्तु यह मूर्तिवत्ता ret अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है। नदी रूप में उस की मूर्तिवत्ता तो है ही, देवी के रूप में उस की मूर्तिवत्ता की कल्पना हमें इस बात का विश्वास दिलाती है कि ऋग्वेदिक ऋषि इस के सूक्ष्म रूप से सन्तुष्ट नहीं थे और उसे शनैः शनैः मूर्तिमान् रूप दे रहे थे ।' यह मूर्तिमान् रूप सरस्वती के भौतिक रूप को दिए गये हैं, जो उस के नैतिक तथा मनोवैज्ञानिक विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं । वैदिक देवियों एवं देवों की परम्परा में उत्पत्ति तथा विकास की अनुपम छटा देखने को मिलती है । वहाँ सर्वप्रथम अनेक देवियों तथा देवों की उत्पत्ति क्रम में उन का समुद्भव दिखाई देता है तथा तत्पश्चात् एक का दूसरे में मिश्रण हो जाता है । यदि किसी का अस्तित्व बचा भी रह जाता है, तो वह निरस रूप (steriotyped form ) में रहता है । सरस्वती के चरित्र के विषय में नितान्त विपरीत बात दृष्टिगोचर होती है । उस के चरित्र में आदितः निरन्तर परिवर्तन तथा विकास की दशा लक्षित होती है । एक ऋग्वैदिक देवी के रूप में वह तीन देवियों का त्रिक' बनाती है, जिसमें इला तथा भारती सम्मिलित हैं । वाणी के तीन रूप प्रकल्पित हैं तथा वे मध्यमा, वैखरी तथा पश्यन्ती हैं । ये तीनों देवियाँ इन तीनों वाणियों का प्रतिनिधित्व करती हैं । ये मध्यमा आदि एक मनुष्य में अन्ततः एक वाणी की तीन अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं । संस्कृत १. तु० सुयमा (ऋ० ६.८१.४); सुभ्रा (वही, ५.४२.१२; ७.४६.६, ६६.२); सुपेशस् (वही, ६.५.८ ) २ . वही,
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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