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माँ सरस्वती
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श्री सरस्वती साधना विभाग
माँसरस्वती संवेदना ओ माँ सरस्वती...! ओ माँ भगवती...!! ओ माँ श्रुतदेवी !!! चरण कमल में अंतरकी अक्षय-अनंत-अनंतानंत वंदना... माँ ! तुझे देखता हूँ और दुनिया भुल जाता हूँ। तेरे दर्शन मात्र से मैं अपने आपको भुल जाता हूँ।
तेरा संस्मरण होते ही मेरे रोम-रोम में अनंत शुभ स्पंदनों का अनोखा आविष्कार होता है।
हे शारदे ! सच कहुँ तो, आज तक मैने तेरी अवगणना, उपेक्षा, विराधना कर-करके बडी घोर आशातना की है।
माँ ! तेरा यह बालक जैसा भी है, लेकिन तेरा ही है । अगर, तुं मुझे छोड देगी, धिक्कारेगी, तो मैं कहाँ जाऊंगा ? .. मेरे मनकी वेदना-संवेदना किसको कहुँगा ? नहि, माँ ! नहिं...
मुझे इस दुःख और दोषरुप संसार से बचावो...मुझे सदबुद्धि दो...सन्मार्ग दो... सदगति और परमगति दो...हमारा मन निर्मल-निर्दभ-निर्मम-निष्पाप बने...हमारा जीवन हमेशा पवित्रमय, आराधना-साधनामय, उल्लासमय, मंगलमय, प्रसन्नतामय, परोपकारमय, सुख-शांति-समाधिमय, कृतज्ञतामय, जिनाज्ञा-गुर्वाज्ञा-शास्त्राज्ञामय एवं कर्म निर्जरामय बने ऐसी सन्मति का वरदान
दो...
पा ...
तेरे आशीर्वाद के प्रभावसे... • हमारा तन सद्कर्तव्यों से सुवासित बने... • हमारा मन सद्विचारों का भंडार बने...
हे अम्बे ! तेरी साधना एवं भक्ति के फल स्वरुप अन्य कुछ अपेक्षित नहि है।
बस, हमेशा तेरा वरद-हस्त मेरे नत-मस्तक पर स्थिर रहे । मैं तेरा कृपापात्र बन सकु ऐसी शक्ति देना। तेरी कृपासे जीव मात्र के समस्त पापों का नाश हो...ॐ शान्ति ।