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________________ ४८ माँ सरस्वती __ श्री सरस्वती साधना विभाग १४) मंत्र जप करते मन मे उद्वेग या खिन्नता न रखें । कलुषित मन से किया हुआ जप निष्फल जाता है। १५) जप उतावलेपन से या अस्पष्ट उच्चार से न करें, भले ही जप थोडा हो, किन्तु शुद्ध और प्रसन्न मन रहें, इस तरह नियमित करें । १६) जप करते बीच मे खण्ड पडें, अखंड न होवे तो वह त्रुटित गिना जाता है। इसलिए अखण्ड (कोई दिन जप बिना न जायें ऐसे) गिने । यदि कोई दिन, जप बिना जाय तो दूसरे दिन शुरु से गिनें । १७) जप करते वक्त दोनों होंठ बंद रखे, तथापि दांत को दांत न लगें और शरीर सीधा और स्थिर रखें । १८) मंत्र जप की शुरुआत श्रेष्ठ मुहूर्त पर सूर्य स्वर (अपने दायें नासिका से श्वास चलता हो तब) चलते वक्त प्रबल संकल्प के साथ करें, त्वरित सिद्धी प्राप्त होती है। १९) कोई भी मंत्र गुरुमहाराज से विधिपूर्वक ग्रहण करने के बाद कम से कम १२,५०० बार उसका जप करें । सवा लाख जप अवश्य फल देता है और उससे ज्यादा हो, तो अधिक ही अच्छा । (यदि उपरोक्त नियम पालनपूर्वक हो तो...) २०) जप काल मे साधा, सात्विक और हलका आहार लेवें । अभक्ष्य , कंद मूल, तामसी या बाजार के खाद्य चिजों को एवं रात्रि भोजन को अवश्य त्यागे तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें | २१) आराधना शुरु करने पूर्व 'श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् एषः योगः फलतु मे श्री लब्धिधरगौतम कृपया च' यह पद तीन बार और 'इमं विजं पउंजामि सिज्झउ मे पसिज्झउ' यह पद एक बार बोलें, फिर जप शुरु करें । इससे जप सफल होता है। जप पूर्ण होने के बाद क्षमायाचना किंजिये । २२) साधना सिद्धीके सहायक अंग १) दृढ निर्णय २) श्रद्धा-स्वजप में विश्वास बाहुल्य ३) शुद्ध आराधना ४) निरंतर प्रयत्न ५) निंदावृत्ति त्याग ६) मितभाषा ७) अपरिग्रह वृत्ति ८) मर्यादा का पूर्ण पालन वगैरे...
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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