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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग २२) श्री विजयप्रभसूरीश्वरजी के शिष्य श्री जितविजयजी ९६ मिनिट में ३६०
नई गाथा करते थे । २३) श्रीमद् विजय देवसूरि-आपश्रीने बाल्य अवस्थामें ६ लाख और ३६
हजार श्लोक की वाचना ग्रहण की थी । २४) श्री सोमप्रभसूरि-आपश्रीने ११ अंग अर्थ सहित कंठस्थ किये थे। २५) श्रीलावण्यसूरि-आपश्रीने ९४ हजार श्लोक प्रमाण व्याकरण का बृहन्न्यास बनाया । जिन शासन शणगार सागर समुदाय के हृदय सम्राट
प.पू. आगमोद्धारक आचार्य भगवंत
श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म.सा. • आपश्रीने जीवन के अंतिम श्वास तक श्रुत भक्ति की है। • अस्त-व्यस्त अवस्था में रहे हुए ४५ आगम ग्रंथों का उद्धार आपश्रीके
कर कमलों द्वारा ही हुआ है । आगम शास्त्रों के संरक्षण हेतु पूरे साधु-समुदाय और गच्छों में आपश्री अग्रणी थे, जिन्होंने शिलापट और ताम्रपट पर आगम लिखवाकर उन्हें चिरस्थायी स्वरूप दिया तथा विभिन्न स्थलोंपर विशाल ७-आगम वाचनाए दी । स्व-जीवन में अनेकविध अर्वाचीन ग्रंथों का सर्जन किया । आपश्री के प्रचंड मेधा-शक्ति से प्रभावित होकर 'शैलाना नरेश' अहिंसक
बन गये । • 'आगमोद्धारक' का बिरुद पाकर आपने जीवन में अनंत ज्ञानोपासना की है।
ऐसे तो अनेक महापुरुष भूतकाल में हो चुके है और वर्तमान में विचर रहे है, जिन्होंने तन-मन लगाकर ज्ञानोपासना द्वारा जिन शासन की अजोड सेवा की है । इन सभी महापुरुषों का स्मरण करके हम भी मन में ज्ञानोपासना करने का दृढ निश्चय करें । हररोज कम से कम १/५ गाथा अवश्य करें । और हाँ, ज्ञान की आशातना तथा उपेक्षा कभी न करें, इसपर विशेष ध्यान रखा जाय । ऐसे भूत-भावि और वर्तमान के सभी ज्ञानी महापुरुषों के चरण कमलों में कोटि-कोटि वंदना...