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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
वाह !... ज्ञान प्रेमीओ ! वाह !!..
१) महा मंत्रीश्वर वस्तुपाल- तेजपाल : आपश्रीने पाटण-खंभात-धोळका आदि नगरो में अठारह करोड (१८,००,००,०००) सुवर्ण मुद्राओं की धनराशी का सद्व्यय करके विशाल २१ ज्ञानभंडार (लायब्ररी) बनाये | २) कुमारपाल महाराज : आपश्रीने ताडपात्र प्राप्ति हेतु अट्ठम तप किया था । ७० वर्ष की उम्र में १८ हजार (१८,०००) श्लोक प्रमाण 'सिद्धहेम' व्याकरण कंठस्थ किया । नित्य ३२ दांत की शुद्धि हेतु (लगभग १४०० श्लोक प्रमाण) ३२ प्रकाश (शास्त्र) का स्वाध्याय करते थे । जीवन में २१ विशाल ज्ञानभंडार कराके ४५ आगम के ७ संच (प्रति) सुवर्ण अक्षर में लिखवाये ।
३) पेथड शाह मंत्री : आपश्री ने गुरुमुख से ११ अंग (आगम) सुने तथा ३६ हजार (३६,०००) सुवर्ण मुद्राओं से श्री भगवती आगम की पूजा की । जीवनमें ७ कोटी (७,००,००,०००) सुवर्ण मुद्राओं का व्यय करके विशाल ज्ञान भंडार बनाये ।
४) संग्राम सोनी : आपने भी ३६ हजार सुवर्ण मुद्राओं से भगवती आगमसूत्र की पूजा की ।
५) थराद निवासी आबु श्रेष्ठि : आपश्रीने ३ करोड धनराशी का सद्व्यय करके ४५ आगम सुवर्णाक्षर में लिखवाये ।
६) लल्लीग श्रावक : गुरु भगवंत रात्रि के अंधकार में भी ज्ञानोपासना कर सके, इस हेतु, आपने उपाश्रय की दिवांलों में चमकते रत्न जड दिये थे । ७) मेडता की एक श्राविका बहन ने तीन लाख (३,००,०००) श्लोक
प्रमाण साहित्य स्वहस्त से लिखा ।
कहाँ यह ज्ञानप्रेमी और कहाँ हम ? आज तक हमने ज्ञान और शास्त्र ग्रंथों की जादातर उपेक्षा ही की है, परिणामतः हम जैनों का सबसे बड़ा ज्ञान भंडार हमारे भारत में न होते हुए जर्मनी में है । हमारी घोर उपेक्षा के कारण ही जर्मनी वासीओं ने हजारों लाखों आगम ग्रंथ चुराए । खेद की बात तो यह है, फिर भी हम जागृत नहीं हो रहे है । ८४ आगम में से आज सिर्फ ४५ आगम