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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग ८) श्री बप्पभट्टसूरिजी : सोलहवें वर्ष की उम्र में आचार्य बने । रोज ७०० नई
गाथा कंठस्थ करना, यह उनकी विशेषता थी । श्री हेमचंद्राचार्य : ६ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की । ८ वर्ष की उम्र में तीव्र बुद्धिशाली बालमुनिश्रीने सिद्धराज जयसिंह के राजदरबार में दिगंबर आचार्य कुमुदचंद्र का पराभव किया । २१ वर्ष की उम्र में आचार्य बने । 'कलिकालसर्वज्ञ' का बिरुद पाया । जीवनमें साडेतीन करोड
(३,५०,००,०००) श्लोक प्रमाण साहित्य का सर्जन किया । १०) श्री हरिभद्रसरि : आपश्रीने १४४४ ग्रंथों का सर्जन किया । ११) श्री देवेन्द्रसूरि : आपश्रीने सवा करोड (१,२५,००,०००) श्लोक
(गाथा) का सर्जन किया । १२) श्री मुनिसुंदरसूरि : आपश्री प्रचंड मेधावी होने से सहस्त्रावधानी बने । १३) श्री उमास्वाति वाचक : आपश्रीने जीवन में तत्त्वार्थ प्रमुख ५०० ग्रंथों का
सर्जन किया । १४) श्री महोपाध्याय यशोविजयजी : ६ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की ।
काशी में ब्राह्मणों द्वारा आपश्री को 'न्यायाचार्य' का बिरुद मिला |
जीवन में ३५० ग्रंथों का सर्जन किया । १५) पू. उपाध्याय श्री यशोविजयजी और पू. विनयविजयजी म.सा. ने
सिर्फ १ रात्रि में न्याय ग्रंथ के ७०० श्लोक कंठस्थ कीये थे । १६) श्री शोभनमुनि : आपश्रीने गौचरी (भिक्षा) वहोरते वहोरते मन में ९६
संस्कृत स्तुतियाँ बनाई। १७) दुर्बलिका पुष्पमित्र : आपश्री इतनी पढाई करते थे कि रोजका १ मटका
(घडा) भरके घी पीते थे, फिर भी हजम हो जाता था । . १८) उपाध्याय समयसुंदरजी : आपश्रीने 'राजानो दधते सौख्यम्' इस
__ छोटेसे वाक्य के आठ लाख (८,००,०००) अर्थ किये है। १९) विजयसेनसूरिजी : आपश्रीने 'नमो दुर्वार रागादि' इसके ७०० अर्थ
किये है। २०) श्रीदेवरत्नसूरि : आपश्रीने 'नमो लोए सव्व साहूणं' इस पद में सिर्फ
'सव्व' शब्द के ३९ अर्थ किये है । २१) श्री संतिकरं रचयिता मुनिसुंदरसूरिजी रोज के १००० श्लोक कंठस्थ
करते थे।