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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
- एक सफर भूतकालमें.... । अच्छा...तो चलो, देखते है...वो महापुरुष कौन थे ? कैसे थे वे, और उन्हों ने जिनशासन एवं सम्यग्ज्ञान की क्या सेवा की ? १) भगवान श्री महावीर के मुख्य ११ शिष्य (गणधर) थे । जिनमें प्रथम थे,
गुरु गौतमस्वामी और पाँचवे थे, गुरु सुधर्मास्वामी । त्रि-पदी को पाकर
११-गणधर भगवंतोने द्वादशांगी की रचना की थी। २) पूज्य सुधर्मास्वामीजी के शिष्यरत्न थे, आर्य-जंबुस्वामिजी, जो अंतिम
केवलज्ञानी थे । जंबुस्वामिजी, के बाद आज तक इस भरतक्षेत्र में
किसीको भी केवलज्ञान नही हुआ है। ३) जंबुस्वामि के शिष्य-प्रशिष्यों में ६ श्रुत-केवली थे, जिनका ज्ञान केवल
ज्ञानी जितना ही था । ६ श्रुत केवली अर्थात् १४ पूर्वधारी के नाम(१) श्री प्रभवस्वामिजी म.सा. (२) श्री 'दशवैकालिक' आगम सूत्र रचयिता
आचार्य श्री शय्यंभवसूरीश्वरजी म.सा.... (३) आचार्य श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी म.सा.... (४) श्री संभूतिविजयजी म.सा.... (५) कल्पसूत्र आगम रचयिता श्रीमद् भद्रबाहु स्वामीजी म.सा. तथा (६) काम विजेता/अंतिम श्रुत-केवली श्री स्थुलिभद्र स्वामीजी म.सा. ४) सिर्फ ३ वर्ष की उम्र में दिक्षा लेकर ११-अंग (आगम सूत्र) को कंठस्थ
करनेवाले अंतिम १० पूर्वीधर आर्य वज्रस्वामिजी । अपनी ज्ञान शक्ति
द्वारा देव से वरदान प्राप्त किया और बौद्ध राजा को 'जैन' बनाया । ५) श्री मानदेवसूरि : संघ कल्याण हेतु श्री 'लघु शांति स्तोत्र' की रचना
की। ६) श्री मानतुंगसूरीश्वरजी : महाप्रभाविक, महाचमत्कारिक श्री भक्तामर
स्तोत्र की रचना की । ७) श्री यशोभद्रसूरीश्वरजी : ४ वर्ष की बाल्य अवस्था में दिक्षा और ११ वर्ष
की छोटीसी उम्र में जिन शासन के विद्वान आचार्य बने ।