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महात्मन ! शोर गुल का अर्थ दुना सलाम मी क्रिया गया वरन श्राप के ८ जुलाई को प्रकाशित 'जय जिनेन्द्र, जिय जिनेन्द्र शब्दका जो कि ठीक ही है। देखिये भापके शब्द ये हैं "परन्तु हमारे सरावगी भाइयोंने एक न मानी और जय जिनेन्द्र जय जिनेन्द्र मादि शब्दों मेशोर-गुल मचाने हुये समाज भव नसे चले गये। रहा शोर गुल मचाने की बात सोजबकि प्रत्येक बनभाई ने (आपके उनको अपने भवन से खदेड़ देने पर भी) मापसे प्रेम पूर्वक्र जय जिनेन्द्र "जय जिनेन्द्र किया और बैसा करने से कुछ शोर गुल हो गया हो तो साश्चर्य नहीं। रही शहर में जय जय कास्की अवनि सो वाहमा सिलसिला और असभ्भता नहीं वरन विजय प्राप्त होने पर इदग्रोल्लास का नमूना है। पुलिस को शान्ति भङ्गका अन्देशा होना भार्यसमाज की कृपाका ही पाल था और इसी कारण वह तहकीकात करनेको मौके पर नार्यसमाज भवनमें गयी होगी पदि दुर्जनतोष न्यायसे थोड़ी देरके अर्थ समाज का यह लिखा मानलिया नाय कि जैनियोंके शहर में हाहू करनेके कारमा शान्ति भङ्ग जाने के भयसे उसको मैंजिस्टेट की साकार लेकर' पाना होने का नियम रखना जरूरी मालूम हुमा तो इस से यह ती प्रत्यक्ष ही है कि जब तक जैनियों ने (मार्यसनाज के लेखानुसार ) शहर में हाहू नहीं की थी तब तक उस को ऐसी (मैजिष्ट्रेट से प्राजा लेने की) भावश्यकता कदापिन थी यदि ऐसा ही था तो वह बीच में एक दिनकी मोहलत क्यों लेना चाहता था, ला. ख छिपाने पर भी उसको अपने ८ तारीख के "भव प्रछनाये होत का जब खुल गई सारी पोल" विज्ञापन में इसका कारण यह लिखना ही पड़ा कि "असली बात यह है कि मार्य समाज एक दिन बीच में इसलिये लेता था कि मैजिष्ट्रेट से माता लेकर मोडमाह का अधम रोकने के लिये पुलिस का पूरा पूरा प्रबन्ध कर लेता असल बात यह है कि प्रार्यसमाज एक दिन बीच में लेकर मैजिष्ट्रेटको शान्ति भङ्ग होने का भय दिखा उसको माता से शास्त्रार्थ बन्द करना चाहता था और हम लोग उसकी इस बातको जान गये थे इसी से हम ससको एक दिन की मोहलत देना पसंद न करते थे। जो हो । सत्सवात छिपाये नहीं छिपती सर्व साधारण को उसके लेखोंसे ही यह भली भांति जान हो गया कि वह क्यों हम लोगोंपर असभ्यता और शान्ति भङ्ग करनेका मिथ्या दोष लगाकर शाखार्थ टलने के अर्थ मैजि. ट्रेट से आता प्राप्त करने का प्राडा लगा रहा था ॥..