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जी साहबके कयनसे स्पष्ट ही है। .
तार - -१९१२ :
जयदेव शर्मा मन्त्री आर्यसमाज अजमेर इस कारण कि उपर्युक्त विज्ञापन में भार्यसमाजने हमारी ओरके प्रति निधियों को लिखित शास्त्रार्थ के विषय में उचित कार्यवाही ( मैजिष्टेट से शास्त्रार्थ के अर्थ प्राज्ञा प्राप्त) करनेके अर्थ अपने दो प्रतिनिधियों में एक बाबू गौरीशङ्कर जी वैरिष्टर एंटलाके बङ्गले पर बुलाया था अतः हमारी ओर से इस विज्ञापनका कोई उत्तर प्रकाशित नहीं हुआ। पर इसमें कई भ्रामक बातें हैं जिनका उत्तर सर्व साधारण के हितार्थ प्रकाशित किया जाताहै।
अपने इस विज्ञापन में प्रार्यसमाजने जैनियों पर प्रथम ही यह मि. च्या दोष लगाया है कि उसने भवन में आपों को हजारों गाली गलौज की और उनपर धन उड़ाने, फर्श उठाने और हाथापांहीं करने का मिथ्या दोष । लगाया । पर जीवडिलका वहां पर उपस्थित थी वह भली भांति जानती है। कि जैमियों ने उस रोज माथ्यों के असम्भव व्यवहारों और वैरिष्टर साहव के अनेक असभ्यः कटु और सज्जनों के मुंहसे न निकलने वाले बचनोंको कैसी शान्ति और धीर्य से सहा । यद्यपि वह लोग उसका मुंह तोड़ उत्तर दे सकते थे पर इस भयसे कि प्रार्य समाज हमारे वैसा करने का बहाना लेकर कहीं शास्त्रार्थ से बदल जाय वह लोग बहुत ही शान्त रहे । निस्सन्देह कुंवर दिग्विजयसिंहजी चन्द्रसेन जैन वैद्य और फूलचन्द्र पांड्या अपने भार्यसमाजी भाइयों की समस्त भ्रामक और असत्य वातोंका बड़ी शान्ति और सभ्यतासे सभा में ही बैठे बैठे या खड़े होकर जिस प्रकार वह बातें कही जाती थीं ) प्रतिवाद किये विना नहीं रहते थे और यदि उन लोगों के ऐसा करनेको ही आर्य समाज गाली गलौज करना समाता हो तो बात ही दू. सरी है। जिस कमरे में हम लोग बैठे थे वहां पर फर्श पहिले से ही विले इये थे इस लिये यह लिखना समाजको नितान्त मिथ्या है कि फर्श हम लोगों के बैठने को विछाये जाते थे। समाज को ऐसा लिखना योग्य था कि हम लोगों के नीचे विछे हुये फर्श स्वामी दर्शनानन्दजीका व्याख्यान पूर्व नि. श्चितानमार होने के अर्थ हम लोगों के नीचे से उठाकर चौकमें विछाये जाते थे। आर्य समाजो उस रोज जैनियोंका जैसा भातिथ्य सत्कार किया वह जैनियों और अन्य उपस्थित लोगोंको बहुत दिनों तक न भूलेगा । शेम !