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• मिसन्देहः ३० जून के शास्त्रार्थ की सभा में आर्यसमाजियोंकी मोर से (सिवाय कुछ सामाजियों के ताली पीटने में अग्रेसर होने के कामको छोड़कर और कोई ) सभ्यता का व्यवहार नहीं हुआ पर ६ जुलाई के शासार्थकी सभाका दृश्य देखने ही योग्य था कि हमारे अनेक श्राय्र्यसमाजी भाई किस प्रकार क्रोधमें भरे हुये अपने नोटिस ब्रांटकर लोगों से दूंगा करते हुये सभा के कार्य्यमें गड़बड़ी डाल रहे थे और 9 जुलाई को उन्होंने समाज भवन में अपनी ममता और उदण्डताको पराकाष्टा दिखला डाली जब कि दोनों मौखिक शास्त्रार्थों में हमने कुल नियम प्रार्थ्य उपदेशकोंकी इच्छानुसार ही रक्खें थे तब उनके शान्ति भङ्ग करनेका कारणं ही क्या हो सकता था |
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हमारी ३० जून को
तालियां वहां पर उपस्थित कुछ मूर्ख लोगोंने (जिनमें कि हमारे कई प्रार्यसमाजी भाई अग्रेसर थे) पोटी थीं और उसमें हमारे अनेक घनभिज्ञः जैन भाई भी सम्मिलित हो गये थे जिसके कि अर्थ इनको बड़ा दुखि है और उनको ओोरसें हम क्षमा प्रार्थी हैं । पर समाजने देखा ही होगा कि हम लोगोंने पूर्व ही तालियां पीटने और जय जयकार बोलने से सबको बिलकुल जोक दिया था और पीटने वालों को खूब धिक्कार कर उनके इस कृत्य पर शोक प्रकट किया था ॥
जिन लोगोंने दोनों ओर के विज्ञापनों को भली भांति ध्यान से पढ़ा है वह इस बातकी साक्षी दे सक्त हैं कि इन लोगों की ओर से प्रकाशित विज्ञापनों में कोई असभ्य और अश्लील शब्द नहीं । श्रार्य समाजने बहुत ढूंढ खोजकर जो तीन नामकी मरम्मत" | "शा समाज की ढोल की पोल और "वादको खाज, शब्द प्रकाशित किये हैं वे अश्लील और असभ्य नहीं वस्न यथार्थ वस्तु स्वरूप को प्रकाशित करने वाले साधारण शब्द हैं । प्रश्लीलता, असभ्यता और व्यक्तिगत क्षेत्रों का प्रवाह यदि देखना हो तो उनके धर्मो से काम नहीं लेखा' शीर्षक विज्ञापनों से इधर के विज्ञापन ध्यान पूर्वक पढ़ें ।
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जब कि तारीख के, प्रातःकाल या समाज के मन्त्रीको सेवा में उपस्थित होने वाले श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी समाके कार्य्यकर्ता गढ़ों से उन्होंने सन्ध्याको बात चीत करने की प्रतिज्ञा की थी श्रीर बाबू गौरीशङ्कर जो वैरिष्टर प्रार्य्यसमाजको घोर से नियम करने के अर्थ प्रति निधि नियत हुये