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जाहिर उद्घोषणा.
करते थे, जिन्हाके दानसे हजारों लाखों मनुष्योंका और पशुओंका पालन होताथा. ऐसे दातार धर्मी व गुरु भक्त जैनियोंके देशोंमें किसी जगह भी हमेशा मुंहपत्ति बांधनेवाला कोईभी साधु न मिला तोफिर दूर २ के अनार्य देशोंमें कैसे मिल सकता है, कभी नहीं. और अनार्यदेशों में साधुको जाना कल्पता नहीं, वहां शुद्ध आहारादि मिलसकते नहीं तथा जैसा धर्म कार्यों के उपदेशका लाभ आर्यदेशोंमें मिलता है वैसा लाभ अनार्य देशोंमें कभी नहीं मिलसकता, इसलिये हमेशा मुंहपत्ति बांधने वाले साधु कहीं २ दूर २ अनार्य देशोंमें होनेका बहाना बतलाना सर्वथा झूठ है.
- फिरभी देखिये- इस देशमें पहिले बडे २ दुष्काल पडेथे. तोभी जैन साधुओंको आहार मिलताथा. आहारके अभावसे आर्यदेश छोड़कर कोई भी जैनसाधु अनार्यदेशमें नहीं गयाथा और उसके बादभी इस देशमें लाखो जैनियोंमें व करोडों सनातनधर्म वालोंमें ढूंढियोंके पूर्वजोंको आहार नहीं मिला तथा कुछभी धर्म देखनेमें न आया इस लिये दूर २ के अनार्य मलेच्छ देशोंमें जाना पडा, बडे अफसोसकी बात है कि अपनी नई बातको प्राचीन ठहरानेके लिये जैनसमाजको व सनातनी उत्तम हिंदुओंको आहार न देनेका व कुछभी र्धम न होनेका कलंक रूप ऐसी २ कल्पित झूठी बातें बनाने में ढूंढियाँको कुछभी विचार नहीं आता इसलिये ऐसी प्रत्यक्ष झूठी गप्प चलाकर लवजीकी हमेशा मुंहपत्ति बांधनेकी बातको सच्ची साबित करना चाहते हैं सो कभी नहीं हो सकती.
फिरभी देखिये विचार करिये इस आर्य खंडमें भगवान् ने पंचमकाल में जैनशासन में २१ हज़ार वर्ष तक अखंड परंपरासे साधु होते रहनेका फरमाया है जिसमें बहुतसे साधु शिथिलाचारी होंगे, थोडे आत्मार्थी शुद्ध संयमी होंगे ऐसा कहा है परन्तु सर्व भ्रष्टाचारी होजावेगें, कोईभी शुद्धसाधु न रहेगा. इसप्रकार संयमी साधुओंका अभाव किसी समयभी नहीं बतलाया, जिसपर भी ढूंढिये लोग भगवानके वचन विरुद्ध होकर सर्व साधुओंको भ्रष्टाचारी ठहरा कर इस आर्य खंडमें शुद्ध साधुओंका सर्वथा अभाव बतलाते हैं और हमेशा मुंहपत्ति बांधनेके नये मत वालों " को शुद्ध साधु ठहराते हैं यहभी प्रत्यक्ष उत्सूत्र प्ररूपणा है ।
ढूंढिये कहते हैं कि लवजीने आगम देखकर मुंहपात बांधी है उसीके अनुसार हमलोगभी आगमप्रमाण मूजब हमेशा मुँहपत्ति बांधते हैं, यह भी