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जाहिर उद्घोषणा. इसलिये भवभिरुयोंको ऐसे झूठे हठ छोडनेमें कभी विलंब न करना चाहिये।
- सम्यक्त्वीके लक्षण. शुद्धश्रद्धावाले शुद्ध सम्यक्त्वी सच्चे जैनीका यही लक्षणहै कि-झूठीप्रपंचबाजी,मायाचारी, हठाग्रह न करे. अपनीभूलको समझने या समझानेपर तत्काल सुधारलेवे झूठीबातको. त्याग करनेमें लोकलज्जा व गुरुपरंपराका हठ न रक्खे, वहतो जिनाज्ञानुसार चलकर कर्मविटंबनासे दूर होकर आत्मकल्याण करनेकी ही हमेशा चाहनाकरे और जबतक संसारमें रहे तबतक भवभवमें जिनाज्ञानुसार धर्मकार्य करनेकी भावना भावे. देखो-जिनाशानुसार चलनेवाला शुद्ध सम्यक्त्वी थोड़ा तपकरे, थोड़ा जपकरे, थोडा ज्ञानपढे, थोडा चारित्रपाले या चारित्र लेनेकी भा. वना रक्खे, चारित्र धर्मपर; जिन आज्ञापर गाढ ( दृढ ) अनुराग रक्खे और जीवदया दान शीलादि यथा साध्य थोडे २ धर्मकार्य करे तो भी वो बडवृक्षके बीजकी तरह बहुत फलदेनेवाले होतेहैं. तथा सूर्यकी किरणोंकी तरह मिथ्यात्व-अज्ञानरूपी अंधकारका नाशकरके मोक्षनगर में जानेके लिये रास्तामें कर्मरूपी कीचडको सूखाकर मोक्षनगरका रास्ता साफ करतेहैं और सम्यग्ज्ञानका प्रकाश करनेवाले होतेहैं उस से श्रेणिक महाराज व कृष्ण वासुदेव वगैरह महान पुरुषोंकी तरह थोड़े धर्मकार्यभी निर्विघ्नतापूर्वक शीघ्र मोक्षदेनेवाले होतेहैं इसलिये शुद्ध श्रद्धासहित जिनाज्ञा मूजब थोड़े धर्म कार्य करने से भी आत्महित होता है, सर्व कर्मोंका नाश होताहै, जन्म-मरणादि दुःख विनाश होतेहैं और मोक्ष मिलनेसे अक्षय सुखकी प्राप्ति होती है.
मिथ्यात्वीके लक्षण.. . . जोप्राणी पांच महाव्रत लेकर ऊपरसे साधुका वेषधारणकरले, परंतु उसके अंतरमें यदि मिथ्यात्वका वास होतो वह प्राणी हजारों सत्य बातोंको छोडकर किसीतरहके झूठे आलंबन खडे करके सत्यबातको उत्थापन करताहै और झूठीबातको स्थापन करनेके लिये बड़ापरिश्रम करताहै. अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी होताहै वह अपने मनमें दूसरे सामने वालेकी सत्यपातको न्यायपक्ष से समझने परभी सिर्फ लोकलज्जा व पूजा मान्यताका अभिमान तथा गुरुपरंपराके आग्रहसे जानबूझकर