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कर्म का विज्ञान दादाश्री : देह ने तो खुद उसका फल भुगता न! दो धौल मारी इसलिए देह को फल मिल ही जाता है। परन्तु उसकी योजना में था, वह इस रूपक में आया।
प्रश्नकर्ता : हाँ, पर योजना की किसने? उस देह ने योजना की थी न?
दादाश्री : देह को तो लेना-देना नहीं है न! बस, अहंकार ही करता है यह सब।
इस जन्म का इसी जन्म में?
प्रश्नकर्ता : इन सभी कर्मों के फल अपने इसी जीवन में भुगतने हैं या फिर अगले जन्म में भी भुगतने पड़ते हैं?
दादाश्री : पिछले जन्म में जो कर्म किए थे, वे योजना के रूप में थे। यानी कि कागज़ पर लिखी हुई योजना। अब वे रूपक के रूप में अभी आते हैं, फल देने के लिए सम्मुख हों, तब वे प्रारब्ध कहलाते हैं। कितने काल में परिपक्व होते हैं? वे पचास, पचहत्तर या सौ वर्षों में परिपक्व होते हैं, तो फल देने के लिए सम्मुख होते हैं।
अर्थात् पिछले जन्म में कर्म बाँधे थे, वे कितने ही वर्षों में परिपक्व होते हैं, तब यहाँ फल देते हैं और वे फल देते हैं, उस समय जगत् के लोग क्या कहते हैं, कि इसने कर्म बाँधा। इसने इस आदमी को दो धौल मार दी, उसे जगत् के लोग क्या कहते हैं? कर्म बाँधा इसने। कौन-सा कर्म बाँधा? तब कहे, ‘दो धौल मार दी।' उसे उसका फल भोगना पड़ेगा। वह यहाँ पर वापिस मिलेगा ही। क्योंकि धौलें मारी, परन्तु आज मार खानेवाला ढीला पड़ गया, पर फिर मौका मिलेगा, तब बदला लिए बिना रहेगा नहीं न! जब कि लोग कहते हैं कि देखो कर्म का फल भुगता न आखिर! तो इसीको कहा जाता है, 'यहीं पर फल भुगतना।' परन्तु हमलोग उसे कहते हैं कि तेरी बात सच है। इसका फल भुगतना है, परन्तु वे दो धौलें क्यों मारी उसने? वह किस आधार पर? वह आधार उसे मिलता