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कर्म का विज्ञान
नहीं है। वह तो कहेगा कि 'उसने ही मारा।' यह तो वह उदयकर्म उसे नचाता है। अर्थात् पहले जो कर्म किया है, वह नचाता है।
प्रश्नकर्ता : वह जो धौल मारी, वह कर्म का फल है, कर्म नहीं है, वह ठीक है न?
दादाश्री : हाँ, वह कर्मफल है। इसलिए उदयकर्म उससे यह करवाता है और वह दो धौलें मार देता है। फिर वह मार खानेवाला क्या कहता है, कि 'भाई, और एक-दो लगा न!' तब वह कहेगा, 'मैं क्या बिना अक्कलवाला मूर्ख हूँ?' उल्टे डाँटता है। पहले जो मारा था, उसका कारण है। दोनों का हिसाब हो न, उस हिसाब से बाहर नहीं होता है कुछ भी। यानी कि यह जगत् ऐसा है कि हिसाबी है, यानी कि एक-एक आना और पाई सहित हिसाब है। इसलिए जगत् डरने जैसा है ही नहीं, बिल्कुल ही
चैन से सो जाने जैसा है। फिर भी बिल्कुल ऐसा निडर नहीं हो जाना चाहिए कि मुझे कुछ नहीं होगा।
कर्मफल - लोकभाषा में, ज्ञानी की भाषा में
प्रश्नकर्ता : सब यहीं के यहीं भुगतना है, ऐसा कहते हैं, वह क्या गलत है?
दादाश्री : भुगतना यहीं के यहीं ही है, पर वह इस जगत् की भाषा में है। अलौकिक भाषा में उसका अर्थ क्या होता है?
पिछले जन्म में अहंकार का, मान का कर्म बँधा होता है, तो इस जन्म में उनकी सारी बिल्डींग बनती हैं, तब फिर उससे वह उसमें मानी बनता है। किसलिए मानी बनता है? कर्म के हिसाब से वह मानी बनता है। अब मानी बना, उसे जगत् के लोग क्या कहते हैं कि, 'यह कर्म बाँध रहा है, यह ऐसा मान करता है।' जगत् के लोग इसे कर्म कहते हैं। जब कि भगवान की भाषा में तो यह कर्म का फल आया है। फल अर्थात् मान नहीं करना हो तो भी करना ही पड़ता है, हो ही जाता है।
और जगत् के लोग जिसे कहते हैं कि 'यह क्रोध करता है, मान