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कर्म का विज्ञान
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कर्म एक या अनेक जन्मों के? प्रश्नकर्ता : ये सभी कर्म हैं, वे एक ही जन्म में नहीं भोगे जाते। इसलिए अनेक जन्म लेने पड़ते हैं न, उन्हें भुगतने के लिए? जब तक कर्म पूरे नहीं हों, तब तक मोक्ष कहाँ है?
दादाश्री : मोक्ष की तो बात ही कहाँ गई, उस जन्म के कर्म जब पूरे होते हैं तब देह छूटती है। और तब भीतर नये कर्म बँध ही गए होते हैं। इसलिए मोक्ष की तो बात ही कहाँ करने की रही? पुराने, दूसरे कोई पिछले कर्म नहीं आते। आप अभी भी कर्म बाँध रहे हो। अभी आप यह बात कर रहे हो न, इस घड़ी भी पुण्यकर्म बाँध रहे हो। पुण्यानुबंधी पुण्यकर्म बाँध रहे हो।
करे कौन और भुगते कौन? प्रश्नकर्ता : दादा, पिछले जन्म में जो कर्म किए, वे इस जन्म में भुगतने पड़ते हैं, तो पिछले जन्म में जिस देह से भुगते थे, वह देह तो जल गया, आत्मा तो निर्विकार स्वरूप है, वह आत्मा दूसरी देह लेकर आता है, परन्तु इस देह को पिछले जन्म के देह का किया हुआ कर्म किसलिए भुगतना पड़ता है?
दादाश्री : उस देह से किए हुए कर्म तो यह देह भुगतकर ही जाती
है।
प्रश्नकर्ता : तो?
दादाश्री : यह तो चित्रित किए हुए, वे मानसिक कर्म। सूक्ष्म कर्म। अर्थात् जिसे हम कॉज़ल बॉडी कहते हैं न, कॉज़ेज़।
प्रश्नकर्ता : ठीक है, परन्तु उस देह ने भाव किए थे न? दादाश्री : देह ने भाव नहीं किए। प्रश्नकर्ता : तो?