________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला ___511 हैं, जिसमें देखने और जानने की शक्ति है। इसलिए हमारी दृष्टि स्थिर हो गई है। दादाश्री : इसीलिए स्थिर हो गई है और इस अस्थिर में भी देखनेजानने की क्रिया है लेकिन संयोगों को देखने-जानने की क्रिया है। देखने असंयोगिक है और यह संयोगी क्रिया है। यहाँ पर जो देखने-जानने की क्रिया कहते हैं न, यह पेड़ आया, पत्ते आए, गाय आई, भैंस आई, ऐसा सब कहते ही हैं न और लोग उसे आत्मा मानते हैं ! इस देखने-जानने की क्रिया में चेतन बिल्कुल भी है ही नहीं। तो अगर कोई पूछे कि किससे चल रहा है यह? चेतन के बिना कैसे चल रहा है? तो वह यह है, 'आत्मा की उपस्थिति में पावर चेतन उत्पन्न हो जाता है। को देखने की और जानने की क्रिया पावर चेतन की है। अब यह देखनेजानने की क्रिया और आत्मा के प्रकाश में ये जो सभी ज्ञेय झलकते हैं तो वे एक ही हैं या अलग-अलग? दादाश्री : वे आत्मा के प्रकाश में अंदर झलकते हैं, यानी कि वहाँ पर शब्द होते ही नहीं हैं। जहाँ पर देखना और जानना है... प्रकाश में उतरने तक शब्द हैं, उसके बाद शब्द चले जाते हैं अपने घर! प्रश्नकर्ता : आत्मा को केवलज्ञान स्वरूप कहा है तो जब ऐसा कहते हैं कि 'केवलज्ञान होता है' तो वह किसे होता है? दादाश्री : आत्मा को ही होता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन खुद केवलज्ञान स्वरूप ही है न? दादाश्री : है ही केवलज्ञान लेकिन बादल हटने चाहिए न! वैसेवैसे होता जाएगा। यह सूर्यनारायण पूरी तरह से दिखने लगे तो किसे दिखने लगे?