________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला 509 दादाश्री : नहीं होता। ऐसा कहीं होता होगा? कोई विचार आए उन्हें आप जान जाते हो, अंदर गुस्सा आए, उसे आप जान जाते हो न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : हं। ऐसे फिर मूल ठेठ तक नहीं पहुँचता। वह प्रज्ञा को पहुँचता है क्योंकि यह अंतरिम (मध्यवर्ती) ज्ञान है, जबकि आत्मा तो सिर्फ ज्ञाता-दृष्टा है! प्रश्नकर्ता : हाँ, अंत तक नहीं पहुँचता, वहीं पर सारी बात है न? मेरा वही पोइन्ट है कि वह अंत तक पहुँचेगा किस तरह? दादाश्री : प्रज्ञा में आने के बाद ही मूल तक पहुँचता है। प्रश्नकर्ता : उसका साधन क्या है? दादाश्री : पाँच आज्ञा ही सब से बड़ा साधन है। पहले इन्द्रिय ज्ञान से दिखाई देता है, फिर बुद्धि ज्ञान से दिखाई देता है और बाद में फिर वह प्रज्ञा से दिखाई देता है और फिर आत्मा से। ज्ञाता का ज्ञेय के साथ का संबंध कैसा है? दादाश्री : वह ज्ञान फिर ज्ञेय को देखता है, इसलिए ज्ञानाकार हो जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन यह जो ज्ञाता है, मूल आत्मा, वह तो कभी ज्ञेयाकार होता ही नहीं है न? दादाश्री : उसे कुछ लेना-देना नहीं है। अंत तक यह प्रज्ञा है और जब केवलज्ञान होता है तो फिर एक! प्रज्ञा भी चली जाती है। प्रश्नकर्ता : अतः आत्मा तो, जब केवलज्ञान होता है तभी काम में आता है, तब तक नहीं? दादाश्री : नहीं! तब तक मूल ज्ञाता-दृष्टा नहीं बन सकता। हमें