________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला 505 प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादा, अभी मैं सुबह का देखने बैलूं, तो अभी का देखना रह जाता है, मैं पहले का देखता हूँ अभी। दादाश्री : लेकिन देखता तो है न! वही तू आत्मा है, फिर वहाँ और किसे देखना बाकी रह जाता है? प्रश्नकर्ता : दादा, इसी को लेकर क्या आपने कहा है कि आत्मा स्व-पर प्रकाशक है? स्व-पर प्रकाशक है, वह खुद को भी प्रकाशमान करता है? दादाश्री : और नहीं तो क्या? जो देखनेवाला है, उसके ऊपर भी देखनेवाला होता है। उस देखनेवाले से ऊपर भी देखनेवाला आत्मा, ज्ञाता कहलाता है और जानने की सभी चीजें ज्ञेय कहलाती हैं और जब देखनेवाला दृष्टा हो तभी ये दृश्य हैं। प्रश्नकर्ता : देखनेवाले से ऊपर भी देखनेवाला है, तो फिर मूल आत्मा का फंक्शन किस तरह होता है इसमें? दादाश्री : ये लोग देखते ही हैं न सभी। पूरी दुनिया देखती है और जानती है न! इनसे कहें कि आप देखते-जानते नहीं हो, तो फिर पूछेगे 'अभी क्या कर रहे हैं हम?' पूरा फोर्ट एरिया देखा, फलाना देखा, फलाना देखा लेकिन उस देखनेवाले को भी जानना है। वापस इस देखनेवाले को भी जाननेवाला है! प्रश्नकर्ता : इस देखनेवाले को भी जानना है? दादाश्री : इस देखनेवाले को जो देखता है और जाननेवाले को जो जानता है, ऐसा है मूल आत्मा। प्रश्नकर्ता : इसे हमने प्रज्ञा कहा अभी। दादाश्री : हाँ, प्रज्ञा। प्रश्नकर्ता : तो फिर इससे आगे मूल आत्मा का फंक्शन क्या रहा? दादाश्री : नहीं। उससे आगे कुछ भी नहीं है। बस, वहाँ पर एन्ड।